चन्द्रिका
शीर्षक चन्द्रिका
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चंद्रिका यथा नाम तथा गुण l सच वह बिल्कुल चंद्रकिरण सी ही खूबसूरत थी l दूधिया गोरा रंग, लंबाई साढ़े पाँच फीट से किसी भी हालत में कम नहीं होगा, कुछ अधिक ही हो सकता है | नाक-नक्श उतना ही खूबसूरत | शरीर की बनावट में भी सब कुछ सही माप में | ना 1 इंच कम ना1 इंच अधिक l लगता था ईश्वर ने उसे पूरे फुर्सत में गढ़ा था | लाल साड़ी पहनती तो देख कर लगता जैसे स्वयँ देवी लक्ष्मी स्त्री-रूप धर धरती पर आ गई हैं | परिवार भी उसका हर तरह से संपन्न था | उसके दादाजी जमींदार थे | अब जमीनदारी वाला समय नहीं रहा परंतु समाज में मान सम्मान अब भी वही था |
चंद्रिका तीन भाइयों की इकलौती बहन थी पिता अब वृद्ध हो चुके थे अतः अपना पूरा कार्यभार उन्होंने अपने बेटों को सौंप दिया था l बड़े भाई जमीनदारी का काम देखते थे गांव में रहकर तथा उनके दूसरे दो भाई व्यापार का काम देखते थे l उनका गाड़ियों और रेडीमेड कपड़ों का व्यापार था जिसे देखने के लिए अक्सर शहर में रहना होता तो उन्होंने इलाहाबाद में मकान बनवा लिया था तथा दोनों भाई अपनी पत्नी बच्चों सहित वहीं रहते थे l पिता कभी इलाहाबाद में रहकर व्यापार में बेटों की सहायता करते तो कभी गांव जाकर बड़े बेटे की जमीनदारी संभालने में सहायता करते | चंद्रिका इलाहाबाद रहकर बी. ए. की पढ़ाई कर रही थी l चंद्रिका से मेरी प्रथम मुलाकात उसके घर में ही हुई थी l मैं उसके भतीजे-भतीजी को पढ़ाने उसके घर जाती थी चंद्रिका मेरी ही हम उम्र थी इसलिए शीघ्र ही हम मित्रता के बंधन में बंध गए l उनका पूरा परिवार बहुत ही शांत और मृदुभाषी था l उस परिवार से मुझे बहुत स्नेह मिला l उसके पिता मुझे देखते ही बहुत प्यार से बेटी-बेटी कह कर बात करते l बच्चों को पढ़ा कर निकलते ही और कभी कभी तो पढ़ाने से पहले ही उसके भैया भाभी बहन जी- बहन जी कहकर मुझे रोक लेते और जो भी विशेष डिश उनके घर में बनी होती मुझे अवश्य खिलाते l मुझे ऐसा लगता जैसे यह मेरा अपना ही परिवार हो l
हाँ तो मैं चंद्रिका के विषय में बता रही थी l चन्द्रिका विवाहिता थी l चंद्रिका और मैं कभी-कभी साथ-साथ लाइब्रेरी जाते l एक साथ आते-जाते मुझे उसके विषय में काफी बातों की जानकारी हो गई थी उसके द्वारा ही l उसने मुझे बताया कि उसके मैट्रिक पास करते ही उसकी शादी हो गई थी l उसकी ससुराल लखनऊ में थी l ससुर लखनऊ के बड़े व्यापारी हैं, और पति एक आईपीएस अधिकारी जिनकी पोस्टिंग हिमाचल में है l मुझे जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि उसका परिवार इतना समृद्ध है l मायके के साथ ससुराल भी l पति भी इतने उच्च पदाधिकारी हैं l मैं बी.ए. की स्वतंत्र परीक्षार्थी के रूप में परीक्षा देने वाली थी और वह नियमित छात्रा थी l बीच-बीच में देखती 10 -15 दिन चंद्रिका घर में नहीं रहती तो मुझे लगता वह अपने पति के पास हिमाचल गई होगी l हम दोनों का बी.ए. पूरा हो गया | मैं विभिन्न प्रतियोगिताओं की भी तैयारी कर रही थी क्योंकि मुझे नौकरी की आवश्यकता थी | परन्तु मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि चन्द्रिका भी विभिन्न रिक्तियों के लिए आवेदन कर रही है l भला उसे नौकरी की क्या आवश्यकता l एक दिन ऐसी ही एक रिक्ति के लिये हम दोनों ने रोजगार कार्यालय में आवेदन पत्र जमा किया l आवेदन जमा कर जब हम निकले तो चंद्रिका ने अचानक कहा “यह नौकरी मेरे लिए अत्यावश्यक है”| मैं उसकी यह बात सुन आश्चर्यचकित रह गई और इतने दिनों से जो प्रश्न मेरे मन में घुमड़ रहा था वह पूछ बैठी -“चंद्रिका मेरी समझ में नहीं आता तुम तृतीय वर्ग की नौकरी के लिए क्यों इच्छुक हो l जबकि तुम्हारा परिवार इतना धनाढ्य है l पति भी उच्च अधिकारी हैं; यदि अपने को प्रमाणित करने के लिए नौकरी करना है तो प्रथम या द्वितीय श्रेणी के पद के लिए तैयारी करो जो तुम्हारे परिवार और पति की प्रतिष्ठा के अनुकूल हो”|
चन्द्रिका कुछ देर मुझे देखती रही फिर कहा -” “चलो सामने के कैफे में चलते हैं” l मैंने उससे अपने प्रश्न का प्रतिउत्तर पाना चाहा परन्तु वह मौन रही l कैफे पहुँचकर हमलोग कोने की एक खाली मेज देखकर बैठ गये और स्नैक्स के साथ कॉफी का आर्डर चन्द्रिका ने कर दिया l उसके बाद कहने लगी ” मैं बहुत दिनों से तुम्हारी आँखों में यह प्रश्न देख रही थी; आज तुमने पूछ लिया तो बताती हूँ सुनो”|
इसके बाद चंद्रिका अपने विषय में बताती रही और मैं सुनती रही | उफ़ | मैं सन्नाटे में बैठी सुन रही थी l इस बीच बेयरा कब आकर कॉफी और स्नैक्स रख गया और चंद्रिका ने मुझे कितनी बार कॉफी पीने के लिए कहा मैं कुछ भी सुन समझ नहीं पाई l मैं तो उसकी आपबीती में इस प्रकार खोई हुई थी कि मुझे अपने आसपास की कोई खबर नहीं थी l मैं चंद्रिका के विषय में लगातार सोचे जा रही थी l ईश्वर ने उसके साथ ऐसा अन्याय कैसे किया l अपने मुस्कुराते चेहरे के पीछे वह कितना दर्द छुपाए बैठी है | मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे और मैं तो बस इस दुनिया में जैसे थी ही नहीं l अचानक चंद्रिका ने मुझे जोर से झिंझोड़ा और मैं अपने ख्यालों की दुनिया से वापस आ गई l
चंद्रिका – ” यह क्या तुम से हंस-बोल कर तो मैं अपना मन बहला लेती थी l अब तुम इस प्रकार लटके चेहरे से मुझे मिलोगी तो मैं कैसे अपना समय व्यतीत करूंगी l
मैं – “चंद्रिका कैसे तुम इतना कष्ट सहन कर हँस- बोल देती हो, मैं सोच नहीं पा रही; सच तुम बहुत बहादुर हो”|
चंद्रिका – “तुमने आज जो सुना उसे अभी इसी वक्त भूल जाओ | मैं तुम्हारे चेहरे पर अपने लिए करुणा और दया नहीं देखना चाहती l मैं तो किसी अन्य की आँखों में भी अपने लिये दया की भावना
नहीं देखना चाहती l तुम मेरी प्रिय सखी मेरी जीवन-रेखा हो l तुममे मैं अपनी वही मित्र चाहती हूं जिसे देखकर ही मैं अपने सारे दुख भूल जाती हूं l तुम्हें आज यह वचन देना होगा, दो मुझे यह वचन”| कह कर उसने अपना हाथ मेरी और बढ़ा दिया | मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ कर अपने माथे पर लगा लिया और कहा – ” चंद्रिका तुम बहुत बहादुर हो और धैर्यशीला भी | मैं तुम्हारे इस धैर्य का सम्मान करती हूं ; मैं तुम्हारे दुःख को भूल तो नहीं सकती परंतु वचन देती हूं तुम्हारा दु:ख मेरे मन में ही रहेगा l बाहर नहीं आएगा जिससे कोई भी तुम्हारा परिचित तुम्हें दया की दृष्टि से देखे l फिर हम अपने-अपने घर चले आये l
मैंने उसके दु:ख की पीड़ा को अपने दिल की गहराइयों में दफन कर दिया l इसके बाद मेरी बैंक में नौकरी हो गई lअब मेरा उससे मिलना-जुलना बहुत कम हो गया था उस समय मोबाइल का प्रचलन नहीं था | हां मुझे जब भी समय मिलता मैं उसके घर के बेसिक फोन पर उन सभी का हालचाल ले लेती; तो चंद्रिका का भी समाचार मिल जाता | कभी उससे बात होती तो कभी नहीं भी होती l मैं उसके घर जाने का अवसर भी नहीं निकाल पाती l नौकरी , घर एवं बच्चों के बीच मैं बहुत व्यस्त हो गई थी l चंद्रिका को अभी तक नौकरी नहीं मिली थी मेरा स्थानांतरण भी दूर दूर होता रहता था l इसलिए मैं कई महीने से उससे बात भी नहीं कर पाई थी l
एक रविवार को बच्चे घुमाने की जिद कर रहे थे तो हम उन्हें गंगा किनारे ले गये बच्चों ने वोटिंग के लिए कहा तो हम वोटिंग के लिए नाववाले से बात करते हुए उसकी नाव में बैठ गए l अब नाव चलने वाली थी तभी पीछे से आवाज आई -” बहन जी बहन जी रुकिये हम भी आ रहे हैं”| पीछे मुड़कर देखा “अरे यह तो चंद्रिका के भैया-भाभी हैं l हमने नाव वाले को रोका l भैया-भाभी के नजदीक आने के बाद अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ फिर हम सारे लोग नाव में एक साथ बैठे l भैया ने कहा — “बहनजी हम दूर से ही आपको देखकर आपके पीछे आपसे ही मिलने आ रहे थे” | फिर उन्होंने मेरे पति और बच्चों से भी ढेर सी बातें कीं l बच्चों ने बहुत मस्ती की नाव में उनके साथ ; लेकिन उनके व्यव्हार में मुझे खोयापन दिख रहा था जैसे वे कुछ बोलना चाह रहे परन्तु बोल नहीं पा रहे lहमने एक दूसरे से हालचाल पूछा l और एक दूसरे के संबंध में जानकारी ली l चंद्रिका का समाचार पूछने पर भैया तो खामोश रहे परंतु भाभी ने कहा-
“बहन जी आपको नहीं पता चंद्रिका तो अब नहीं रही; उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली” | मैं अवाक् | ” अरे कब कैसे ऐसा हुआ” |
भाभी ने बताया — ” एक माह हो गया कारण तो कुछ भी नहीं पता चला l रात अच्छे से खा पीकर सोई ,सुबह देखा तो पंखे से फंदा लगाकर झूल रही थी ;उसकी ससुराल में ही सारा क्रिया-कर्म संपन्न हुआ | हम तो कुछ भी नहीं समझ सके उसने ऐसा क्यों किया उसे कमी क्या थी”| मैंने उसके भैया की ओर देखा -“भैया आप कुछ कहेंगे” |भैया खामोश रहे l मुझे उनकी पीड़ा समझ मेंआ गई l
आज चंद्रिका हमारे बीच नहीं है तो मैं उसे दिए वचन से भी मुक्त हूँ l आज उसके जीवन का सच उद्घाटित कर रही हूं lशायद यह मेरी श्रद्धांजलि हो उसके प्रति l जैसा कि मैंने पहले लिखा था कि मैट्रिक करने के बाद ही उसकी शादी हो गई थी और उसके पति एक आईपीएस अधिकारी थे जिनकी नियुक्ति हिमाचल में थी l स्वाभाविक सी बात थी उम्र में लगभग दस-बारह वर्ष का अंतर था l विवाह के बाद विधि-विधान के समाप्त होते ही वह अपनी पोस्टिंग पर वापस चले गए और चंद्रिका अपनी ससुराल में रह गई l कुछ दिन तो मायके-ससुराल के रस्मो-रिवाज में बीते | फिर उसने पति के साथ हिमाचल जाने की ज़िद की तो पति ने कहा -“तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो वहां पढ़ नहीं पाओगी “| इस प्रकार ससुर ने कॉलेज में इंटर में नामांकन करवा दिया था l सास-ससुर यूँ तो चन्द्रिका का काफी ख्याल रखते परंतु घर में अकेली रहने के कारण से मन नहीं लगता था उसका l मायके में काफी बड़ा परिवार था उसका इस कारण उसे यूं अकेले रहना पसंद नहीं आता l यहां सास-ससुर थे सिर्फ l एक ननद थीं तो वे विवाहिता थीं और वे अपने परिवार के साथ रहती थीं l उनका कभी-कभी ही आना होता l
चंद्रिका को आश्चर्य होता, यूं तो उसके सास- ससुर उसका बहुत ध्यान रखते हैं परंतु हिमाचल जाने की बात करती तो वे टाल जाते कहते – “अजित को आने दो उसके साथ चली जाना इतनी दूर सफर करना हमसे संभव नहीं हो पाता”| और अजित तो आते ही नहीं थे हमेशा व्यस्तता का बहाना बनाकर टाल जाते l
हाँ यदि चन्द्रिका कभी मायके जाने की बात करे या कभी जेवर कपड़ों की कोई पसंद ही बता दे तोउसके ससुर पल भर की देरी नहीं करते उसकी इच्छा पूरी करने में l उन्होंने बैंक में खाता खुलवा कर एकमुश्त एक बड़ी राशि खाते में डाल दी थी और उस खाते में वे पैसे डालते रहते थे यह पूछे बिना कि उसे उन पैसों की आवश्यकता है भी या नहीं l वह जैसे चाहे वैसे पैसे खर्च कर सकती थी l कभी भी उसके सास-ससुर ने उससे पैसों का हिसाब नहीं मांगा l ना ही खाते में धनराशि कम होने दी;लगातार उसमें राशि डालते रहते थे | उसके मायके आते समय उसकी सासु माँ उसकी अटैची में हजार के नोटों के बण्डल डाल देतीं उसके मना करने के बाद भी l चन्द्रिका इन सबको उनका मातृ-पितृ तुल्य स्नेह ही समझती l
इसी प्रकार दिन बीतते रहे और इंटर की परीक्षा देने के बाद वह अपने मायके आई l यहीं से भाई-भाभी के साथ कार्यक्रम बन गया उसके हिमाचल जाने का | उसने सोचा था उसके ससुर तो जा नहीं पाते और अजित जी को अवकाश नहीं तो क्यों नहीं भैया से कहुँ उसे छोड़ आयें l उसने कहा और फिर भैया ने कहा -“अच्छा है अभी तुम्हारी लंबी छुट्टी भी है हो आओ”|
और वह अपने भैया के साथ चल पड़ी विवाह के दो वर्ष के बाद अपनी गृहस्थी बसाने l विवाह के बाद जो सतरँगी सपने सजाए थे वह अब जाकर पूरे होने वाले थे l वह पति की पोस्टिंग वाले शहर में पहुँची और उनके आवास पर गई l परन्तु यह क्या | उसके सारे सपने पल भर में बिखर गये l वह जिस गृहस्थी को सजाने की उत्कण्ठा लिये यहां पहुंची थी वह उसकी थी कहां; उस पर तो किसी और का अधिकार था | अजित की पत्नी वहां पहले से ही उपस्थित थी साथ ही एक बच्चा भी l उसे पता चला उसका पति तो पूर्व से ही विवाहित था परंतु पत्नी के विजातिय होने के कारण अजित के माता-पिता ने उसे स्वीकार नहीं किया l अतः उनका मन रखने के लिए उसने सजातीय लड़की चंद्रिका से विवाह कर लिया l परंतु वह तो सिर्फ माता-पिता के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन के लिए किया था l बड़ी निर्लज्जता से अजित ने कहा – “समाज के सामने तुम मेरी पत्नी हो परंतु कानूनी दृष्टि से ” •••••वाक्य अधूरा छोड़ दिया l चंद्रिका एवं उसके भाई अवाक रह गए l इसके बाद अजित ने पुनः कहा – “तुम लखनऊ ही रहो और उनकी सेवा करो तुम्हें रुपयों की कभी कोई कमी नहीं होगी”| चन्द्रिका एवं उसके भैया आश्चर्यचकित रह गए | अजित ने जो वाक्य अधूरा छोड़ा था उस वाक्य का अर्थ उसके इस वाक्य से पूरा हो गया l चंद्रिका को चक्कर आने लगे थे अजीत की पत्नी ने ही उसे संभाला और पानी पिलाया l उसने कहा – “मैं तुम्हारी हर संभव सहायता कर सकती हूं l परंतु तुम ही कहो मैं तुम्हारी दोषी कैसे हूँ l मैंने तो अजित से विवाह किया था तुम्हारे विवाह से पहले lउसके घर वालों ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं ससुराल नहीं गई परंतु यहां के समाज में मैं इनकी पत्नी हूं हमारी शादी विधिवत कोर्ट में भी पंजीकृत है” |
चंद्रिका वहां से वापस आ गई फिर ना उसने अपने पति को कभी पत्र लिखा ना ही उनकी कोई भी सहायता ही स्वीकार की | सास-ससुर की वास्तविकता भी चंद्रिका को ज्ञात हो गया था | सारा मान,मनुहार,दुलार अपना अपराध-बोध कम करने के लिए ही था | उसके पति के प्रेम की कमी की पूर्ति वे जेवर और कीमती कपड़ों से कर रहे थे l ऐसी स्थिति में भी चन्द्रिका उनके पास जाकर बीच- बीच में दस-पन्द्रह दिन के लिए रह आती उनका अकेलापन दूर करने को l
वह समय भी ऐसा नहीं था जब इस प्रकार की स्थिति में लड़की के दूसरे विवाह की सोचा भी जा सके l इसलिये चंद्रिका नौकरी करना चाहती थी जिससे वह व्यस्त हो जाए और अपने जीवन की कमी पर ध्यान देने का उसे समय ही नहीं मिले l इसलिए ही उसने अपने ससुर अथवा पिता-भाइयों के व्यवसाय में भी सम्मिलित होना स्वीकार नहीं किया | जितने दोषी उसके साथ-ससुर थे उतने ही उसके पिता और भाई भी | इन्हें भी तो शादी के पहले वर के संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाहिए था l उस दिन मैंने उसके भैया की आंखों में वही पश्चाताप देखा था l आज जब चंद्रिका नहीं है तो उसकी दु:खद कहानी मैं लिपिबद्ध कर रही हूं l चंद्रिका तुम तो इस जहाँ से चली गई l तुम ईश्वर के पास पहुंच गई हो l मेरी सखी तुम उसी ईश्वर से विनती करना , अनुरोध करना कि किसी और लड़की को तुम्हारे जैसी पीड़ा नहीं झेलनी पड़े l
मैं अपने ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ वह तुम्हारे पति को उसके पाप की सजा इसी धरती पर दें l
नमन चन्द्रिका तुम्हें नमन l
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
निर्मला कर्ण