दोहा पंचक. . . मकरंद
दोहा पंचक. . . मकरंद
पंकज दल के अंक से , उड़े मधुर मकरंद ।
ब्रह्मा रचता सृष्टि के, इसमें जीवन छंद ।।
जीवन को सुरभित करे, प्रथम प्रेम मकरंद ।
अन्तस को देता चरम , दिव्य प्रभा आनन्द ।।
बड़ा अनोखा प्रीत का, होता है मकरंद ।
रोम -रोम में रागिनी, साँसें में आनन्द ।।
रिश्तों को दूषित करे, आपस के सब द्वन्द्व ।
बलिवेदी पर स्वार्थ की, मिटे मधुर मकरंद ।।
पंकज खिलता पंक में, फिर भी दे मकरंद ।
ऐसे ही बस आपकी , गंध फिरे स्वच्छंद ।।
सुशील सरना / 31-5-24