चदरिया
1-चदरिया सवैया
लालच लोभ भरी लिप्सा लिपटी जस होय पिटारी विषैली
काम व क्रोध की बेल बनी जब जो थल पास रहा तहां फैली
होकर मोह महामद में भरली यह मूरख पाप की थैली
रामहिं नाम से धो पगले यह देह की चादर हो गई मैली।।
2- घनाक्षरी छंद
दाग पर दाग लगे काली-काली दीख रही ,
पल भर भी न टिके इस पै नजरिया।
नई नई दूसरी मिलेगी नहीं दुनिया में ,
अभी तक ऐसी कोई खुली ना बजरिया।
उस दिन की चिंता में बार-बार आंसू बहें,
जैसे कहीं घनी घनी बरसे बदरिया।
साजन के घर ओढ़ कर जाना होगा सखी,
ओरछोर हुई मैली मैली सी चदरिया।
गुरु सक्सेना नरसिंहपुर( मध्य प्रदेश)