चंदा सी सूरत में को लुभाती
**चंदा सी सूरत मन को लुभाती**
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चंदा सी सूरत मन को लुभाती है,
आँखों ही आँखों से बुलाती है।
नभ में छायी घन घोर अंधेरी,
काली रातों में वो जगाती है।
गम आँसू बन बदली बरसती है,
यादों में आ हमको रुलाती है।
झपकी गर सोने की कहीं होती,
थपकी दे कर गोदी सुलाती हैं।
महबूबा मनसीरत चली आती,
अपने हाथों चूरी खिलाती है।
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सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)