चंदा मामा गोरे गोरे
चंदा मामा गोरे- गोरे सबके मन को भाते हो
ये बतलाओ किस साबुन से आखिर रोज नहाते हो
हमने तो आकार बदलते हर दिन तुमको देखा है
चंदामामा किस दर्जी से, कपड़े तुम सिलवाते हो
छोटा सा है रूप तुम्हारा गोल गोल रोटी जैसा
कैसे इतनी धवल चाँदनी, चंदा सँग में लाते हो
हमने तुमको घड़ी बाँधते, नहीं कभी भी देखा है
सही समय पर चंदा कैसे रोज रात को आते हो
समझ नहीं पाए ये तुमको अगर तैरना आता है
चांद निकल-कर बार-बार तुम डूब किसलिए जाते हो
इतने सारे नभ में तारे, अठखेली करते रहते
कैसे चंदा वहां अकेले, मंद -मंद मुस्काते हो
नहीं ‘अर्चना’ को दिखते हो कभी -कभी तुम अंबर में
ये बतलाओ किस कोने में जाकर तुम छिप जाते हो
03-05-2022
डॉ अर्चना गुप्ता