चंदा की डोली उठी
वह जो कभी
मेरी होती थी
हो गई आज
बेगाने की
हालत है क्या
उससे बिछड़कर
मत पूछो
दीवाने की…
(१)
उससे मुझे
जो प्यार मिला
मेरे नग्मों का
मौज़ू था
एक जान हुआ
करती थी वही
मेरे हर
अफसाने की…
(२)
उसकी बदौलत
मेरे लिए
तनहाई भी
एक महफ़िल थी
अब तो जैसे
महफ़िल भी
एक अक्स हुई
वीराने की…
(३)
आया कहीं से
एक लूटेरा
ले गया
हुस्न की देवी को
रह गया पुजारी
लुट-पिट कर
रौनक ही गई
बुतखाने की…
(४)
किसी रकीब की
शबिस्तां में
शमा को
रोशन देखकर
एक बुझी हुई
राख-सी
सूरत हो गई
परवाने की…
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Shekhar Chandra Mitra
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