घुटन
कितने सुलगते
सवाल उठाकर
जाए हर शाम सुहानी
उफ्फ़
क्या यही ज़िंदगी है
मेरे दिल,
क्या यही है जवानी…
(१)
यह छोटी-सी बात
समझने में
हाय, कितनी देर
लगी हमको
काश कर लेते
ठीक समय पर
हम भी थोड़ी नादानी…
(२)
मैं लाज की चौखट
लांघ न सकी
तुम अपनी दिलेरी
दिखा न सके
इस तरह
अधूरी छूट गई
हमारी प्रेम कहानी…
(३)
कुछ मूर्दा रिवाज़
भारी पड़े
हमारे मासूम
अरमानों पर
यह मरघट का
सन्नाटा तो
है उसी की निशानी…
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Shekhar Chandra Mitra
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