घुटन का गीत
घुटन का गीत
कभी-कभी, अंदर की घुटन,जैसे जकड़ लेती हो मन।
दिल की दीवारों पर दस्तक,और दिमाग़ का हर कोना चुप।
आंसू तो बहते हैं, पर,सुकून के क़दम नहीं आते।
जैसे हर चीख़, हर पुकार,खुद में ही डूब जाए।
कैसे कहूं इस दर्द की जुबां?कैसे समझाऊं इस खालीपन का मकां?
रौशनी की हर किरण बुझ गई,अंधेरों ने अपना घर बना लिया।
न सांस में राहत, न धड़कन में चैन,जैसे सब कुछ बन गया हो एक बैर।
दर्पण भी अब सवाल करता है,क्या तुम सच में वही हो, जो था?
मन चीखता है, कोई सुन ले,पर खामोशियां बहरी हैं।
घुटन का ये आलम,जैसे कैद में आत्मा पड़ी है।
पर शायद, घुटन ही एक सबक है,एक राह दिखाने का संकेत।
अंधेरों में भी कोई दीप जलाओ,अपने दर्द को गीत बना जाओ।
क्योंकि हर तकलीफ का अंत है,हर घुटन का कोई छोर।
सिर्फ उस उम्मीद को थामे रखो,और खुद को नया सवेरा दो।