घास की रोटी का वो निवाला रे
अमर हो गया भाला-वो राणा का रखवाला
अमर हो गया घास की रोटी का वो निवाला रे
जो प्रताप सुत के हाथों से छीन ले गया बिडाला रे।
अमर हुई मेवाड़ की भूमि अमर वहां की प्रजा हुई
अमर अरावलि पर्वत श्रेणी अमर केसरी ध्वजा हुई
राजपुताने की गरिमा माटी से निष्ठा अमर हुई
स्वतंत्रता की स्वाभिमान की प्राणप्रतिष्ठा अमर हुई
अमर हुआ अपमान मान की धर्मविरोधी चालों का
अमर हो गया उन्मूलन अकबर की कुटिल कुचालों का
अमर हो गई स्वामी-भक्ति-अमर हो गए झाला रे
सिर पर मुकुट रखा राणा का और शीश दे डाला रे।
अमर हो गया भाला-वो राणा का रखवाला
अमर हो गया घास की रोटी का वो निवाला रे
जो प्रताप सुत के हाथों से छीन ले गया बिडाला रे।
वैभव का वैधव्य अमर कष्टों से सगाई अमर हुई
पग-पंकज में चुभते कांटे और फटी बिवाई अमर हुई
महलों का चित्कार और कुटियों की वेदना अमर हुई
भील सैनिकों के मन की बलिदान चेतना अमर हुई
हल्दीघाटी की माटी का रक्तिम परिवर्तन अमर हुआ
अश्वराज और राणा का रणतांडव नर्तन अमर हुआ
अमर हो गया है प्रताप के पौरुष का उजियाला रे
अमर हो गया चेतक की टापों का शब्द निराला रे।
अमर हो गया भाला-वो राणा का रखवाला
अमर हो गया घास की रोटी का वो निवाला रे
जो प्रताप सुत के हाथों से छीन ले गया बिडाला रे।
सीमोल्लंघन सहनशक्ति का-बाध्यसमर्पण अमर हुआ
फिर कवि के प्रेरक शब्दों से शरणागति तर्पण अमर हुआ
अमर हो गए भामाशाहजी दान दास का अमर हुआ
अमर हुई माटी दिवेर की अमर वहां का समर हुआ
राणा के कर के भाले की चिर रक्त-पिपासा अमर हुई
चित्तौड़ दुर्ग फिर पाने की आशा-अभिलाषा अमर हुई
अमर हुआ रणभूमि बीच राणा का खड़ग कराला रे
अरिमुंडों को काट-काट जिसने रच दिया अटाला रे।
अमर हो गया भाला-वो राणा का रखवाला
अमर हो गया घास की रोटी का वो निवाला रे
जो प्रताप सुत के हाथों से छीन ले गया बिडाला रे।
रनिवासों की शोभा का वनवासी होना अमर हुआ
विस्मृत सेज मखमली और पत्थर का बिछौना अमर हुआ
सुख के संग-संग दुख में भी सहवासी होना अमर हुआ
समर भवानी के सुत की संन्यासी होना अमर हुआ
अंतर मन से प्रकट हुई थी वो चिनगारी अमर हुई
रणचंडी को सौंप के पति चंतर रतनारी अमर हुई
अमर हर्इं क्षत्राणियां पीकर जौहर की ज्वाला रे
इसीलिए वीरों के गले पड़ती आई जयमाला रे।
अमर हो गया भाला-वो राणा का रखवाला
अमर हो गया घास की रोटी का वो निवाला रे
जो प्रताप सुत के हाथों से छीन ले गया बिडाला रे।