घाव
घाव
बहुत अद्भुत हो तुम
बचपन में मिले
जब भी हम तेज भागे
दौड़े बेतहाशा
खोकर होश
परंतु
भर गए कुछ ही दिनों में
वे घाव
अब पता भी नहीं चलता
कि
कभी चोटिल हुआ था मैं
समय बीता
फिर एक दौर आया
किशोर हुआ
अब भी तुम आए
मेरे जीवन में अनायास
धीरे-धीरे न जाने
कब और कैसे
मेरे मन के पल्लव घरौंदा
बन गए
एक अलौकिक सौंदर्य का
मानवता की प्रतिमूरत था जो
और था मेरे
प्रत्येक स्पंदन का आधार
सांसों के तार
उसी से होते थे अर्थवान
उसी से सजाते वीणा पर स्वर
न जाने कब और कैसे हुआ
वह जीवन का आधार
हे मेरे !अलौकिक आलोक
दिव्या और पारलौकिक
कभी दूर न होना मुझसे
अन्यथा
वे घाव कभी न होंगे ठीक
सभी घावों की दवा हो सकती है
परंतु हे सनातन सौंदर्य
घाव जो तुम दोगे
उसके कोई हल न होंगे
उसके कोई उपाय न होंगे।