घाव
इस जीवन के राह में,मिला हमें जो
घाव।
कविता बन उगने लगे,मेरे सारे भाव।।
वक्त हमें देता रहा, तरह-तरह के घाव।
धीरे-धीरे कुछ भरे, कुछ का रहा प्रभाव।।
चुभे तीर जब शब्द का, करे हृदय में घाव।
जीवन भर भरता नहीं, इतना तीव्र प्रभाव।।
हमको अपनों ने दिया, सबसे गहरा घाव।
फिर उस पर मरहम लगा,किया नमक छिड़काव।।
हद से ज्यादा दो नहीं, कभी किसी को भाव।
वरना पाओगे वहाँ, सबसे गहरे घाव।।
जीवन में सबसे अधिक,जो देता है घाव।
सत्य वचन है मानिये,उसका नाम लगाव ।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली