घर
घर
रिद्धि का छत्तीसवां जन्मदिन था और उसने तय कर लिया था कि अब वह माँ पापा के साथ न रहकर अलग फ़्लैट में रहेगी, उसकी प्रैक्टिस अच्छी चल निकली थी , और उसे लगता था कि अब वह पूरी तरह आत्मनिर्भर है , परन्तु माँ का कहना था कि वह घर से तभी जायेगी जब उसकी शादी हो जायेगी । होगी वह एक सफल गायनेकोलोजिस्ट , पर मम्मी उसको सफल तभी मानेगी जब वह अपना बच्चा पैदा करेगी।
सिद्धी रिद्धि से दो साल छोटी थी और एक साल पहले तलाक़ देकर वापिस घर आ गई थी, उसका अपना स्टार्टअप था, और उसे स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही थी, कभी रात को बारह बजे वापिस आती थी तो कभी वहीं आफ़िस में रह जाती थी , उसने सफलता की देवी के लिए अपना खाना पीना, सोना जागना, सब ताक पर रख दिया था । कभी कभी दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर पार्टी करती थी, घर आती तो उसके मुँह से सिगरेट और शराब की बदबू आ रही होती । मम्मी को चिंता हो जाती, यह कैसे फिर से अपना घर बसायेगी, कैसे बच्चे पैदा करेगी।
आजकल माँ पापा दोनों चिंता में रहते थे और अक्सर सोचते थे क्या उनके पास और रास्ते थे, क्या उन्होंने अपने बच्चों के लिए इस भविष्य की कल्पना की थी !
बाहर के कमरे से दादी ज़ोर ज़ोर से अपनी बहु को आवाज़ें दे रही थी और किसी भी तरह की गाली देनें में जरा भी नहीं हिचकिचा रही थी, वह यह जानना चाहती थी कि आख़िर उसका खाना समय पर क्यों नहीं पहुँचा था । मम्मी ने माफ़ी माँगते हुए खाने की थाली उनके सामने रख दी । रिद्धि और सिद्धी ने बचपन से माँ की यही हालत देखी थी, पापा बाहर चाहे कितने बहादुर बनें, पर अपनी माँ के सामने एकदम फिसड्डी बन जाते थे। दादी को यह शिकायत थी कि माँ ने ख़ानदान को वारिस नहीं दिया और दो बेटियों की शादी का बोझ पापा पर लाद दिया था ।
पापा भी अजीब थे, कभी भी घर में मेहमान ले आते थे, उन्हें घर के काम गुड़ियों का खेल जैसे लगते थे । ऐसे में माँ की बस एक ही इच्छा थी कि उनकी बेटियाँ किसी तरह से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन जायें , और उन्हें पति तथा ससुराल से सम्मान मिल सके ।
रिद्धि सिद्धि भी अपनी माँ कीं स्थिति देख रहीं थी और चाहती थी अपने लिए बेहतर जीवन का निर्माण कर सकें । रिद्धि को जब एम बी बी एस में गोल्ड मेडल मिला तो उन्हें लगा, उनकी सारी समस्याओं का अंत हो गया, पापा बहुत खुश थे फिर भी उन्हें रिद्धि के दहेज की चिंता लगी हुई थी । सिद्धि ने अहमदाबाद से एम बी ए किया, और अपने एक सहकर्मी विशाल से विवाह कर लिया, परन्तु विवाह के लिए दोनों के पास ही समय नहीं था, लगातार यात्राओं से वे थके हारे रहते थे, घर में खाना बहुत कम बनता था, शादी के दो साल हो गए थे, कभी कोई संबंधी या मित्र उनके यहाँ एक रात बिताने भी नहीं आया था। विशाल चाहता था, वह परिवार बढ़ायें, और सिद्धि को डर था, बच्चा आ जाने से उसका कैरियर पिछड़ जायेगा, और वह अपनी माँ कीं स्थिति में पहुँच जायेगी। माँ पापा दोनों ने परिवार की अहमियत पर उपदेश दिये, परंतु सिद्धि यही कहती रही कि अभी जल्दी क्या है , वह अभी तीस की ही तो है।
कुछ वर्ष पूर्व तक रिद्धि विवाह न हो सकने के कारण बहुत उदास रहती थी, उसे लग रहा था, बच्चा पैदा करने की सही उम्र निकले जा रही थी, पर पैंतीस के होते न होते उसने अपनी नियति स्वीकार कर ली थी ।
नाना नानी न बन सकने के कारण माँ पापा बहुत उदास रहते थे, एक दिन शाम को वे चारों इकट्ठे बैठे यही सब बातें कर रहे थे तो रिद्धि ने कहा,
“ किसलिए चाहिए बच्चे, पापा आपकी दो बेटियाँ हैं, तो आपका y क्रोमोसोम तो वैसे भी नई पीढ़ी तक नहीं जा सकता, और माँ आपका माइटोकोंडरिया आपकी बहन कीं बेटियों द्वारा आगे पहुँच जायेगा ।”
“यह क्या बात हुई बेटा, बच्चे को बड़ा करना सबसे संतोषजनक अनुभव होता है। “ माँ ने कहा ।
“ पर माँ जब तक समाज मातृत्व को सम्मान नहीं देगा, तब तक यह होगा कैसे?” रिद्धि ने कहा ।
“ बिल्कुल “ सिद्धि ने कहा, “ हमें आपसे बेहतर जीवन मिल सके, इसके लिए माँ आपने हमें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना दिया, इस पूरी कोशिश में बच्चा कब कैसे पैदा होगा, इसकी चर्चा न कभी घर पर हुई, न स्कूल कालेज में, न कभी आफिस में औरतों के इस रोल को लेकर कुछ बदलाव लाये गए, आपकी पीढ़ी ने बदसूरत के साथ ख़ूबसूरत भी बहा दिया , और अब देखो, कितनी खोखली हो गईं हैं हमारी ज़िंदगी ।”
वे चारों चुप थे, जानते थे, पूरी सदी ही बिना किसी जीवन दर्शन के , केवल तकनीक के बल पर आगे बढ़ रही है, और मनुष्य अपने सहज जीवन के लिए तड़प रहा है ।
———शशि महाजन