घर में दो लाचार (कुंडलिया)*
घर में दो लाचार (कुंडलिया)*
बेटे जाकर बस गए ,घर से दूर अपार
अब बूढ़े माँ-बाप हैं ,घर में दो लाचार
घर में दो लाचार ,साँस बाकी हैं गिनते
हारे थके निढ़ाल ,देखते खुशियाँ छिनते
कहते रवि कविराय ,उठे बैठे या लेटे
गुमसुम हो दिन-रात , याद करते हैं बेटे
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451