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24 Feb 2023 · 1 min read

घर में दो लाचार (कुंडलिया)*

घर में दो लाचार (कुंडलिया)*

बेटे जाकर बस गए ,घर से दूर अपार
अब बूढ़े माँ-बाप हैं ,घर में दो लाचार
घर में दो लाचार ,साँस बाकी हैं गिनते
हारे थके निढ़ाल ,देखते खुशियाँ छिनते
कहते रवि कविराय ,उठे बैठे या लेटे
गुमसुम हो दिन-रात , याद करते हैं बेटे

रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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