घर – परिवार
दिन के दो बज चुके थे। कुछ मिनट पहले ही डॉ. मालती अपनी डिस्पेंसरी से मरीजों को देखकर घर लौटी थीं। उस समय बच्चे स्टडी रूम में पढ़ाई कर रहे थे। डॉ. मालती उन्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझीं और सीधे बेडरूम के बगल के बेसिन में अपना हाथ-मुँह धोया। फिर तौलिए से हाथ-मुँह पोंछा। इस बीच, खुशी, जो घर का काम कर रही थी, को आवाज देकर अपना खाना डिनर टेबल पर लगवाii । उन्होंने अकेले खाना खाया और फिर सोने के लिए बिछावन पर चली गईं।
डॉ. मालती सोने का प्रयास करने लगीं, अभी आँखें झपकनी शुरू ही हुई थीं कि इतने में स्टडी रूम से दौड़ती हुई निकिता आई और माँ से खिसियाती हुई बोली—”मॉम, भैया मुझे डिस्टर्ब कर रहा है, मैं कैसे पढ़ाई करूं?”
डॉ. मालती ने मुस्कराते हुए निकिता को अपने पास बुलाया, उसके सिर पर हाथ फेरा और उसके बालों को सहलाते हुए बोलीं—”बेटी निकिता, तुम बहुत भोली हो, बिलकुल इनोसेंट। तुम समझती नहीं कि भैया तुम्हें तंग नहीं करता, वह तो तुमसे बहुत स्नेह करता है। वह तुम्हें चिढ़ाता है और तुम चिढ़ जाती हो।”
माँ की बात सुनकर निकिता का सारा गुस्सा फुर्र हो गया। हंसते हुए निकिता बोली—”मॉम, आप हमेशा मुझे इसी तरह समझा देती हैं और भैया से कुछ नहीं कहतीं।”
निकिता माँ से लिपट गई और इधर-उधर की बातें करने लगी। मॉम भी उसे अपने से चिपकाकर उसके माथे पर हल्के-हल्के हाथ फेरती रहीं, और आठ वर्षीय निकिता वहीं माँ के साथ सो गई।
निकिता तो निद्रा देवी की गोद में चली गई, परंतु डॉ. मालती को नींद नहीं आई। कुछ समय तक अपनी आँखें बंद रखीं, लेकिन नींद नहीं आई। नींद भी अजीब चीज़ है; जब आती है तो सारे सुख-दुख को अपने में समेट लेती है, और जब नहीं आती, तो सारे दुख-सुख को बिखराकर चिंतन-सिंधु में डूबने को मजबूर कर देती है।
नींद नहीं आ रही थी, और अचानक डॉ. मालती के दिमाग में उनके अध्ययन काल की कुछ घटनाएँ हृदय में हलचल मचाने लगीं। उनके कॉलेज के दिनों की यादें ताज़ा हो गईं। देहरादून का मेडिकल कॉलेज, वहाँ के क्लासमेट, स्टाफ, प्रोफेसर और डॉ. आलोक मेहता। इंस्टिट्यूट के प्रांगण में एक वृक्ष के नीचे झिलमिल रोशनी की उपस्थिति में घंटों बैठकर भिन्न-भिन्न प्रकार की बातें करना। ये स्मृतियाँ डॉ. मालती के दिल को उसी तरह गुदगुदा देती थीं जैसे बगीचे के पौधों की पत्तियों को हवा का झोंका कम्पित कर देता है और पौधों के अंग-प्रत्यंग में एक तरंग प्रवाहित कर देता है।
अचानक कमरे में किसी के आने की आहट ने उनकी सोच की धारा को तोड़ दिया और विचारों के मोती बिखर गए।
“कौन?” डॉ. मालती बाहर की ओर देखते हुए बोलीं।
“मैं हूँ, मॉम, निखिल।”
“आओ, बेटा आओ, मैं तुम्हें ही याद कर रही थी। जब मैं क्लिनिक से आई थी तो तुम्हें डिस्टर्ब नहीं किया।”
“क्यों माँ? मैं तो अभी यहीं स्टडी रूम में था।”
“उस समय तुम पढ़ रहे थे, इसलिए तुम्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझी।”
“क्या हुआ था, मॉम?”
“कुछ देर पहले निकिता तुम्हारी शिकायत लेकर आई थी।”
“हाँ मॉम, वह आई होगी, यह तो उसके लिए आम बात है। मेरी निकिता बहुत भोली है। मैं थोड़ा कुछ कहता नहीं हूँ कि वह तुरन्त सुप्रीम कोर्ट में केस दायर कर देती है।”
“केस दायर नहीं, बेटा, प्रेम। यही तो भाई-बहन का प्रेम है। इसी से तो घर-परिवार की सारी समस्याओं का समाधान होता है। मन में घुटने से अच्छा होता है कि अपने मन की बातें किसी के साथ साझा करके निकाल दी जाएं।”
“क्या बोल रही थी निकिता, ज़रा बताओ मॉम, अभी मैं उसकी खबर लेता हूँ।”
“अब कुछ कहने-सुनने की ज़रूरत नहीं है, मैं निकिता को समझा-बुझाकर सुला चुकी हूँ। अब मैं थोड़ा आराम कर लूं बिटिया के साथ, फिर क्लिनिक भी तो जाना है।”
“ठीक है माँ, आप आराम कीजिए, मैं भी मैथ का होमवर्क करने जा रहा हूँ।”
मॉम से बात करके निखिल फिर अपने कमरे में चला गया। निकिता बगल में सो रही थी। उसे अपने पेट से सटाकर डॉ. मालती सोने का प्रयास करने लगीं, पर नींद नहीं आई। फिर भी वह बिछावन पर कुछ समय तक पड़ी रहीं। कुछ देर बाद डॉ. मालती उठीं, मुँह-हाथ धोया, डॉक्टर का लिवास पहना और अपने क्लिनिक की ओर चल दीं।
दिन के दो बज चुके थे। कुछ मिनटों पहले डॉ० मालती अपनी डिसपेंसरी से रोगी देखकर घर पर आयी थी। उस समय बच्चे स्टडी रूम में पढ़ाई कर रहे थे। डॉ० साहिबा उन्हें डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझीं । सीधे बेड रूम के बगल के बेसिन में अपना हाथ-मुँह धोई। फिर तौलिए से हाथ-मुँह पोंछी| और मेड, खुशी, घर का काम कर रही थी| खुशी को आवाज देकर अपना खाना डिनर टेबुल पर लगवाई| अकेले खाना खाई और बिछावन पर सोने चली गयीं। डॉ० साहिबा सोने का प्रयास करने लगी, अभी आँख झपकी लेनी शुरू ही की थी कि इतने में स्टडी रूम से दौड़ी-दौड़ी निकिता आयी और माँ से खिसियाती हुई बोली—“मोम, भैया डिस्टर्बस मी, हाउ कैन आई स्टडी ? डॉ० मालती निकिता को मुस्कराती हुई बड़े प्यार से अपने नजदीक बुलाई, उसके सिर पे हाथ फेरी और उसके केश को सहलाती हुई बोली— “बेटी निकिता, तुम बहुत भोली हो, बिलकुल इनोसेंट, तुम समझती नहीं कि भैया तुम्हें तंग नहीं करता, वह तो तुमसे बहुत स्नेह करता है। वह तुम्हें चिढ़ाता है और तुम चिढ़ जाती हो।” मौम की बात सुनकर निकिता का सारा गुस्सा फुर्र हो गया। हँसती हुई निकिता बोली-“ मोम, आप हर-हमेशा इसी तरह मुझे समझा देती हैं और भैया से कुछ नहीं कहतीं हैं.” निकिता माँ से लिपट गयी, इधर-उधर की बात करने लगी। मौम भी अपने में चिपकाकर उसके माथा पर हल्का-हल्का हाथ फेरती रही और आठ वर्षीय निकिता वहीं पर माँ के साथ सो गयी।
निकिता तो निद्रा-देवी के आगोश में चली गयी परन्तु डॉ० मालती को नींद नहीं आयी। कुछ समय तक अपनी आँख को मुंदी थी तो जरूर लेकिन नींद न आ पायी। नींद भी गजब चीज है; आ जाती है तब सारे सुख- दुःख को अपने में समेट लेती है और नहीं आती है तो सारे दुखों-सुखों को बिखराकर चिंतन-सिन्धु में डूबकी लगाने को मजबूर कर देती है| नींद नहीं आ रही थी एकाएक डॉ मालती के दिमाग में उनके अध्ययन काल के वक्त की कुछ घटनाएँ हृदय में हलचल मचाने लगी| अपने कॉलेज के दिन की बात याद आ गयी। देहरादून का मेडिकल कोलेज, वहाँ के क्लासमेट,स्टाफ, प्रोफेसर के साथ डॉ० आलोक मेहता। इंस्टिट्यूट के प्रांगण में एक वृक्ष के नीचे झिलमिल लाईट की उपस्थिति में घंटों बैठकर भिन्न-भिन्न तरह की बातों का स्मरण डॉ० मालती के दिल को उसी तरह गुदगुदा देती थी जिस तरह बगीचा के पौधों के पत्तियों को हवा का झोंका कम्पित कर देता है, पौधों के अंग-प्रत्यंग में एक तरंग प्रवाहित कर देता है। रूम में अचानक किसी के आने की आहट ने उसकी सोच-लड़ी को तोड़कर विचार-मोती को बिखेर दिया था।
“कौन?” डॉ० मालती बाहर की ओर देखती हुई बोली।
“मैं हूँ मोम, निखिल।”
“आओ, बेटा आओ, मैं तुम्हें ही याद कर रही थी| मैं जब क्लिनिक से आयी थी तो तुमको डिस्टर्ब नहीं की थी ।”
“क्यों माँ? मैं तो अभी यहीं स्टडी रूम में था।”
“ उस समय तुम पढ़ रहा था इसलिए तुमको डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझी ।”
“ कुछ थी क्या ,मोम ?”
“कुछ देर पहले निकिता तुम्हारी शिकायत लेकर आयी थी ।”
“ हाँ मौम, वह आयी होगी, यह तो उसके लिए आम बात है। बहुत भोली है मेरी निकिता। थोड़ा सा मैं कुछ बोला नहीं, कि तुरत सुप्रीम कोर्ट में केस दायर।”
“केस दायर नहीं, बेटा| प्रेम, यही तो भाई-बहन का प्रेम है। इसी से तो घर-परिवार की सारी समस्याओं का निदान होता है। मन-ही-मन घुटने से अच्छा होता है, अपने मन के भरास को किसी के साथ शेयर करके निकाल देना।”
“क्या बोल रही थी निकिता, ज़रा बताओ मोम, अभी मैं उसकी खबर लेता हूँ।”
“अब कुछ कहने-सुनने की जरूरत नहीं है, मैं निकिता को समझा-बुझाकर सुला दी हूँ। अब मैं थोड़ा आराम कर लेती हूँ बिटिया के साथ, फिर क्लिनिक भी तो जाना है।”
“ठीक है माँ, आप आराम कीजिये, मैं भी मैथ का होम टास्क बनाने जा रहा हूँ।”
मॉम से बातचीत करके निखिल फिर अपने कमरे में चला गया। निकिता बगल में सो रही थी| उसे अपने पेट से सटाकर डॉ० मालती सोने का प्रयास करने लगी। पर नींद न आयी। फिर भी वह बिछावन पर कुछ समय तक पड़ी रही। कुछ देर के बाद बिछावन से डॉ० मालती उठी, मुँह-हाथ धोई, डॉ० का लिवास धारण की और अपने क्लिनिक की ओर चल दी।
इस तरह समय बीतता गया। बच्चे बड़े होते गए। पढाई-लिखाई होती रही। डॉ० साहब और डॉ० साहिबा के कुछ बाल सफ़ेद होने लगे, दोनों बुढापा के दहलीज पर पैर रखने लगे थे। निखिल और निकिता पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी पा ली। अपने पापा-मम्मी के सपनों को पूरा किये और समाज में बच्चों ने एक मिशाल कायम कर दिए। समय बीतता गया, कारवाँ बढता गया।
एक दिन जब डॉ० आलोक अपने क्लिनिक में एक रोगी को देख ही रहे थे। तभी कम्पाउण्डर के द्वारा कुछ समय पहले बाजार से लाई हुई एक पत्रिका पर नजर पडी । कवर पेज पर उनका और डॉ० मालती का तस्वीर छपा था| रोगी देखने के बाद डॉ० साहब पत्रिका को हाथ में लिए, उलट-पुलटकर देखने लगे। भीतर के पेज में एक लेख छपा था जो डॉ० मालती के विचार-व्यवहार के बारे में लिखा हुआ था। जिसमे डॉ० साहिबा की भूरी-भूरि प्रशंसा की गयी थी। उनके बच्चों के लालन-पालन करने का ढंग से लेकर रोगी के साथ किये गए सद-व्यवहार का भी जिक्र था। उस समय तक लगभग सभी रोगी का डायगनोसिस डॉ० मेहता द्वारा हो चुका था|
डॉ० साहब कम्पाउण्डर को अन्दर बुलाये और पूछे- बाहर कोई और मरीज बचा है?
जी, दो मरीज हैं जिनका नम्बर नहीं लगा था लेकिन वे दोनों दिखवाना चाहते हैं|
“उनका नंबर क्यों नहीं लगा?”
“आप ही उस समय मना कर दिये थे, सर|”
अच्छा मैंने कहा था? मरीज कैसा है, नार्मल या सीरियस?
“सांस तेज चल रहा है एक का और दूसरा को सर्दी-खांसी बुखार है|”
“एक -एक करके भेजिए|”
“जी सर|’
डॉ० साहब जब सारे मरीज को देख लिए तब उन्होंने अपने ड्राईवर से अपना बैग गाड़ी में रखने को कहा। हाथ में ही मैग्जीन लेकर डॉक्टर साहब कम्पाउण्डर से पूछा- यह मैगज़ीन ?
“सर, जब मैं बाहर गया था तब एक बुक स्टाल पर इसे देखा तो खरीद लिया|”
“धन्यवाद |” डॉ० साहब मुस्करा कर बोले और अपनी गाडी की ओर मैगज़ीन को हाथ में लिए हुए बढ़ गए| घर में घुसते ही उन्हें पुत्र निखिल पर नजर पड़ी, बोले – “ अम्मी कहाँ है?”
“ अपने बेडरूम में।” निखिल ने कहा।
अपनी पत्नी के बेडरूम के नजदीक पहुँचते ही डॉ० मेहता बोले– “माई लव, आज तुम्हें अपने बच्चों के परवरिश का ईनाम मिल गया ।” .
“सो कैसे ?” आश्चर्य प्रकट करती हुई डॉ० मालती बोली।
“तुम खुद ही देख लो और पढ़ लो।”
“दिखलाओगे तब तो देखूँगी और पढ़ूँगी।”
अपने हाथ में छिपाकर रखी पत्रिका को दे ही रहे थे तभी वहाँ निकिता आ गयी। अब वह अठाईस वर्ष की हो चुकी थी और माँ की तरह वह भी डॉ० निकिता हो गयी थी। निखिल भी एक सफल इंजीनियर बन चुका था। अपने मौम-डैड की प्रसन्नता देखकर वे दोनों भी काफी खुश थे|। उसके कवर पेज पर डॉ० आलोक, डॉ० मालती, निखिल और निकिता का फोटो छपा था और लिखा था- “एक सुखी और खुशहाल परिवार।”
डॉ० मेहता मुस्कराते हुए बोले — “एक बात और। इस पत्रिका के अन्दर एक लेख छपा है जिसका नाम आवरण कथा रखा गया है जिसमे लिखा गया है कि ‘डॉक्टर के बिजी लाईफ के बाबजूद डॉ० मालती ने बच्चों में शिक्षा के साथ संस्कार भी दिया है। यह हम सबों के लिए प्रेरणा का सबब है। एक महिला डॉक्टर की सोच-समझ ने पूरे परिवार को उन्नति के शिखर पर ले गया, सफलता का सोपान उपलाब्ध कराया और परिवार को शीर्ष पर लाकर घर-परिवार को स्वर्ग बना दिया।’
डॉक्टर मालती आज खुशी से फूले नहीं समा रही थी। पत्रिका ने यह भी लिखा है कि ‘डॉ० मालती ने अपने व्यस्त जिंदगी के बाबजूद अपने बच्चों का उचित मार्गदर्शन देकर अपने बच्चों के भविष्य में चार चाँद लगा दिया।’
डॉ० आलोक हँसकर अपनी पत्नी से बोले — “बहुत, बहुत मुबारक |”
“आपको भी बधाई |’ पत्नी ने मुस्कराकर जबाब दी |
तभी वहाँ निखिल, जो कुछ दिन पहले घर पर छुट्टी में आया था, भी आ गया। पत्रिका में अपनी माँ की सूझ-बूझ एवं प्रशंसा को पढ़कर काफी खुश हुआ| उसे बचपन की बहुत सारी बातें याद आने लगी |निखिल ने कहा- निकिता, आज जो हम सब हैं यह सब पापा और मम्मी का ही दें है| आज होटल में एक पार्टी बनता है|
“सियोर भैया|”
चारों एक दूसरे से उसी तरह लिपट गए जैसे पहले किसी सुखद माहौल में लिपटते थे। निखिल अपना एक बड़ा सा मोबाईल निकाला, मैग्जीन के कॉभर पेज को आगे रखा और मुस्कराते हुए कहा—” डैड सामने देखिये, मॉम सामने देखिये एक सेल्फी से इसे अभी सेलीब्रेट करें और शाम में हमलोग चलते हैं एक अच्छे होटल में डिनर पर ।”
दरवाजा पर खडा कम्पाउण्डर मन-ही-मन बोला— “यह एक घर नहीं, सचमुच धरती पर एक स्वर्ग हैं।”