“घर घर की कहानी”
“घर घर की कहानी”
कोई सबको समझने और अपना बना के रखने का जिम्मा उठा रखा था । सबको खुशी देने का दिल में अरमान रखा था। सबको साथ साथ रखने का हर प्रयास कर रहा था। क्या गुनाह था उसका या सोच गलत थी उसकी । लोग समझने के बजाय दूर और दूर होते चले जा रहे थे। सभी अपने , पराए नजर आ रहे थे। घर ऐसा लग रहा था मानो घर में सन्नाटा छा गया हो । किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था।
………✍️ योगेन्द्र चतुर्वेदी