घर को बाँधे रखे रहे
मरते-मरते
जिम्मेदारी
काँधे रखे रहे
जैसे-तैसे
बप्पा घर को
बाँधे रखे रहे
उछला-कूदा समय
नहीं पर पकड़
फिसलने दी
पाँव तले रहकर भी
पगड़ी
नहीं उछलने दी
उदरों का भी ध्यान
गिद्ध भी
साधे रखे रहे।
चार हाथ का
ठाँव बनाया
सिर ऊपर छानी
यथा समय
ससुराल पठाया
पाँच सुता स्यानी
तीनों बेटों को
पाटे में
नाधे रखे रहे
वट ढहते ही
कूल तोड़
उग आईं वांछाएँ
बाँह चढ़ा
आँगन में ईंटें
चूल्हे गिनवाएँ
दिल में छुरी
अधर पर
‘राधे-राधे’ रखे रहे
✍ रोहिणी नन्दन मिश्र
इटियाथोक, गोण्डा- उत्तर प्रदेश