घर की इज्जत
“इन्सपेक्टर चेतना ने अपनी टोपी निकाली और कुर्सी पर बैठ कर सुस्ताते लगी । अभी वह चार लड़कियों को पकड कर लाई थी जो रात को दो बजे घर से बाहर नशे की हालत में रेस्तरां में शोरगुल मचाया रही थी । उन चारों के चेहरे देख कर चेतना की आँखो के आगे चार साल पहले के चित्र घुम गये :
” डरी सहमी-सहमी सी दो चोटी बनाऐ चेतना ने विवेकानंद शासकीय कालेज में प्रवेश किया था तभी कालेज की वाउन्डरी पर बैठी लडकियों ने जोर से आवाज लगाई थी नयी ” परीन्दी ” और सभी ने घेर लिया उनमें से एक ने पास आते हुए कहा :
” बहुत शरीफ है बैचारी अरे अभी हमारी और बाहर की हवा नही लगी बता तेरा नाम क्या है ? ”
” जी चेतना ”
” अरे जैसा नाम है वैसा बन कर रहना है हमारे साथ समझी मिस चेतना कालेज में हंगामा है मचाना ।”
“जी”
“अरे जी की बच्ची यह तो बात तेरी बाप क्या करता है जेब खर्च के कितने पैसे मिलते है अब तक सिगरेट दारू मारू का टेस्ट किया है ।”
चेतना ने कहा :
” जी वह मजदूर है चार सो रूपये रोज मिलते है माँ बरतन रोटी बनाती है , जेब खर्च कुछ नहीं मिलता और हाँ बस नमक रोटी मिल जाऐ तो बहुत है । बाबूजी माँ मजदूरी के पैसो को बचा कर मुझे पढा रहे है वह भी मेरी ज़िद की वज़ह से ।”
चेतना की बात से लडकियों का उत्साह ठंडा पड़ गया फिर उलाहना देते हुए बोली :
” अब हमार ये दिन भी आना थे मजदूर बाप की बेटी चलो जाने दो इसे ।”
इसके बाद उसकी तरफ किसी ने मुड कर नही देखा ।
बी ए करने के बाद वह पुलिस इंस्पेक्टर बन गयी थी और गौतम नगर थाने में पदस्थ थी ।”
तभी लडकियों का नशा उतरने लगा और वह हडबडा कर यहाँ वहाँ देखने लगी ।
चेतना का चलचित्र टूट गया और उस ने टोपी पहन ली । वह लड़कियाँ अब चेतना के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी ।
” मेडम हम बहुत पैसे वाले घरानों से हैं हमारे माता पिता इज्जतदार है आपने कोई एक्शन लिया तो हमारी बहुत बदनामी होगी अब ये रंजना की तो सगाई ही होने वाली है वह टूट जाऐगी मेडम प्लीज ।”
चेतना ने जोर से कहा :
” बंद करो बकवास इतनी अपने बाप की इज्जत की चिंता होती रात रात घर बाहर नही रहतीं वह भी नशे की हालत में। ”
फिर टोपी उतार कर चेतना ने कहा :
” पहचाना ये वही परीन्दी है जिसके बाप की तुमने खुलेआम बेइज्जती की थी ,
खैर कम से कम अपने माता पिता भाई बहन पति ससुराल का ख्याल रखो । ”
अब सब लड़कियाँ आश्चर्य से उसे देख रही थी और उस से माफी मांग रही थी ।
चेतना ने लड़कियों की , उनके माता पिता की इज्जत और उनके भविष्य का ख्याल करते हुए आगे ऐसा नही करने का लिखवा कर छोड दिया ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल