घर आंगन
गीतिका
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बरसे प्रिय है ऋतु सावन।
महके सबके घर आंगन।
बरसे जल शीतल शीतल।
लगती सब को मनभावन।
मन खोकर है अति व्याकुल।
जब सुन्दर भीग रहा तन।
बढ़ती रहती प्रिय चाहत।
सहमा सहमा हर स्पंदन।
बिजुरी चमके दमके जब।
गरजे तब श्यामल से घन।
प्रिय दूर नहीं रहना तुम।
धरता अब धैर्य नहीं मन।
कर लो अब हासिल मंजिल।
यह जीवन का शुभ दर्शन।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १०/०६/२०२४