घनाक्षरी
घनाक्षरी
~~~
दीपक जलें अनेक सौहार्द स्नेह भाव के,
आपसी व्यवहार में दूर अन्धकार हो।
खिलेंगे सभी जगह पुष्प मन लुभावने,
प्यार से सभी के मन झूमती बहार हो।
अभावग्रस्त जब कभी राह में मिले कोई,
सौमनस्य का मधुर मन में संचार हो।
साथ मिल सभी बढ़ें भेदभाव छोड़कर,
परहित सेवार्थ ही जिन्दगी का सार हो।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य