घनाक्षरी छंद
आई बरसात है
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अंग में उमंग भरे , हृदय में नेह झरे ।
धरती की गोद भरे , आई बरसात है।।
ताल भरे कूप भरे , नदी नव रुप धरे ।
वसुधा सुगंध करे , आई बरसात है ।।
दादुर का कण्ठ खुले ,मोर वन नृत्य करे।
वायु संग मेघ चले , आई बरसात है ।।
चपला चमक उठे , हवा भी उड़ान भरे।
कीट पतंगा जी जगे ,आई बरसात है ।।
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स्वरचित एवं मौलिक
शेख जाफर खान