घनाक्षरी छंद (विभावना अलंकार) प्यार
प्यार की घनाक्षरी
विभावना अलंकार
जहाँ बिना कारण के कार्य हो
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हमने सोचा था किसी, को पता नहीं चलेगा,
चुपके से सदा प्यार के दिये जलाएँगे ।
जब मन करेगा तो, खुद मन मर्जी से,
प्यार की पावन नदी, साथ में नहाएंगे ।
तू भी चुप मैं भी चुप, सभी कुछ चुप चुप,
फिर भी कहाँ से कैसें,भेद खुल जाएँगे।
सोचा भी नहीं था कभी, तेरे डैडी मेरे घर,
एकाएक चार गुण्डे,लेके चले आएँगे।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर