घनाक्षरी छंद दशहरे पर रावण
दशहरे पर रावण
घनाक्षरी छंद
1
मैंने तो सीता के चरणों की सदा वंदना की,
मर्यादा की रेखा से पग न बढ़ाया है।
अपने उद्धार हेतु हरण किया था पर,
वासना की त्रासना में मन न फसाया है।
बीते लाखों साल हर साल जलाते हैं मुझे,
एक गलती का दंड आजतक पाया है।
पापी नेता कर रहे बलात्कार रोज रोज,
अभी तक किसी ने न उनको जलाया है।
2
भारी धूम धाम से दशहरा मनाते सभी,
सनातन धर्म की परम्परा निभाते हैं ।
हर साल ऊँचा करते जाते हैं कद मेरा,
हृदय में बैठे राम को नहीं जगाते हैं ।
चलाके पटाखे मेरा पुतला जलाके हर्ष,
सिंधु में समाके खुशियों में भर जाते हैं ।
मुझे क्या मारेंगे अवगुणों में मेरे बाप हैं ये,
मन बहलाने सिर्फ पुतला जलाते हैं।
3
हृदय में मैंने बसाया था जग जननी को,
मेरे उर तीर राम मार नहीं पाये हैं ।
तीर मारते मुझे तो लगते सीता माता को,
सीता जी में और लोक दूसरे समाये हैं ।
कई लोकों का विनाश फिर कैसे मारें मुझे,
करुणानिधान भगवान सकुचाये हैं ।
परमात्मा ने मुझे कभी न बुलाया पास,
मैंने ही प्रभु को मेरे पास बुलवाये हैं ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
25/10/20