घनाक्षरी छंदों के नाम , विधान ,सउदाहरण
घनाक्षरी छंदों के नाम विधान सउदाहरण
मनहरण (मनहर) घनाक्षरी ||••|| जनहरण घनाक्षरी ||
जलहरण घनाक्षरी || ••••••••♪•• ||कलाधर घनाक्षरी ||
रूप. घनाक्षरी || ••••••••••••••|| कृपाण घनाक्षरी ||
डमरू घनाक्षरी || •••••••••••••• || विजया घनाक्षरी ||
देव घनाक्षरी ||•••••••••••••••••• ||सूर घनाक्षरी ||
घनाक्षरी छंद को कवित्त मुक्तक भी कहते है , यह मापनी युक्त दंडक छंद है |
घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे अधिक लोकप्रिय है । इस लोकप्रियता का प्रभाव यहाँ तक है कि बहुत से मित्र मनहरण को ही घनाक्षरी का पर्याय समझ बैठते हैं । इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 7 वर्ण होते हैं ( प्रत्येक चरण में 16, 15) के विराम से 31 वर्ण हुए | इसमें चार चरण होते है , चारों पद के अंत में समान तुक होता है ।
प्रत्येक पद का अंत गुरू से होना अनिवार्य है किन्तु अंत में लघु-गुरू का प्रचलन अधिक है । शेष वर्णो के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है
इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान आवश्यक है
छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर
‘यति’ अच्छी रहती है
जहाँ तक हो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करें तो पाठ मधुर होता है। यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो , दो विषम एक साथ हो,
, वर्ण कलन –, त्रिकल त्रिकल द्विकल उचित है , पर द्विकल त्रिकल त्रिकल या त्रिकल द्विकल त्रिकल , उचित नहीं कह सकते है
रही बात इस विधा में तुकान्त की। पहले 8 अक्षर की यति और दूसरे 8 अक्षर की यति का तुकांत उत्तम है । तीसरे 8 अक्षर यति की भी तुकांत, मिल जाए तब सोने पर सुहागा है |
अलग भी रख सकते है
इसी प्रकार 7 अक्षरों की यति तुकान्त चारों पद में मिलाना आवश्यक है।
मनहरण घनाक्षरी छंद का शुद्ध रूप तो ८-८-८-७ ही है. अर्थात (१६-१५, ) इसमें आधा अक्षर गणना में नहीं लिया जाता है |
गणना के समय एक व्यंजन या व्यंजन के साथ संयुक्त हुए स्वर को एक वर्ण माना जाता है. संयुक्ताक्षर को एक ही वर्ण माना जाता है
छन्द शास्त्र के नियमानुसार इस घनाक्षरी छन्द के कुल नौ भेद पाये जाते हैं, पर वर्तमान विद्वानों नें यह संख्या दंडक छंद सी परिधि से बढ़ा दी है |
कवि लेखक के शिल्प की पहचान छंद में देखने मिल जाती है , ऐसा नहीं है कि वर्ण गिनाकर कोरम पूरा कर दिया , वर्ण कलन और शब्द कलन का मेल छंद में देखने मिल जाए , तब लय देखकर वाह ही निकलती है
जैसे –
मूर्ति मनुहार (शब्द. कलन भी सही है 3 5 )
व छंद के हिसाब से वर्ण कलन भी सही है – 24
इसी तरह – पूज्य दरबार (शब्द कलन 35 )
वर्ण कलन – 2. 4.
हालांकि मनहरण घनाक्षरी में शब्द कलन का प्रावधान नहीं है ,क्योंकि वर्णक छंदों में सिर्फ वर्ण गिने जाते है , पर यह कवि का शिल्प है कि वह छंद में कैसे समन्वय प्रदान कर लय लाता है
कुछ शिल्पगत त्रुटियुक्त घनाक्षरी लिखते है. नियम तो नियम होते हैं. नियम-भंग महाकवि करे या नया कवि , दोष ही कहलाएगा.
कभी महाकवियों के या बहुत लोकप्रिय या बहुत अधिक संख्या में उदाहरण देकर गलत को सही नहीं कहा जा सकता है
कवि भी अपने शुरुवाती दौर की लिखी रचनाओं में त्रुटि मानते देखे गए है , पर उनके शुरुवाती दौर की रचनाएं , लोग उदाहरण देकर विवाद प्रलाप पर उतर आते है ,
काव्य सृजन में नियम न मानने पर कोई दंड निरुपित नहीं है, सो हर रचनाकार अपना निर्णय लेने में स्वतंत्र है.
उदाहरणार्थ
#मनहरण घनाक्षरी
आज सुनो मेरी नाथ, झुका रहा निज माथ ,
शीष रखो शुभ हाथ , करता पुकार है |
लखकर तेरी छवि , शर्म यहाँ खाए रवि ,
आकें बोलें भाव कवि ,मूर्ति मनुहार है ||
मिले दया शुभ दान , पाते भी है शुचि ज्ञान
रखें सभी यह ध्यान, पूज्य दरबार है |
कहे “सुभा” देखो अब , नेह रहे मीठा सब
भक्त झुकें जब-जब , मिले उपचार है ||
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#जनहरण घनाक्षरी
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं ।
प्रत्येक पद का 31 वां वर्ण गुरू होगा , शेष सभी वर्ण लघु होते हैं ।
चारों पद के अंत में समान तुक होता है ।
रघुकुल पढ़ कवि , दशरथ सुत रवि ,
अनुपम लख छवि , कह प्रभु सुनिए |
मनहर पग लख , हटकर रस चख ,
विनय वचन रख , कह प्रभु गुनिए ||
निकसति ध्वनि धन , अरपन शुभ मन ,
मम घर उपवन , महकत रखिए |
सियपति चरनन , परम सुजन मन
भजत विनय धुन , मम उर बसिए ||
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#जलहरण घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 31वां एवं 32वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये
अर्थात अंत में दो लघु होना चाहिये ।
चारों पद के अंत में समान तुक होता है ।
महादेव शिव शंभू , बना रखें नभ तंबू
है त्रिशूल शुभ बम्बू , गिरिराज हिमालय |
शीष जटा सिर गंगा , सदा रखें मन चंगा ,
राख लगी तन अंगा , चंद्र दिखे भालोदय ||
वेश बना अवधूता ,संग रहें सब भूता ,
झुककर जो भी छूता, होता पापों का भी क्षय |
भक्त रखें सब नाता , बने आप शुभ दाता ,
छाया जो भी पाता , दूर रहे सब भय |
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#कलाधर छंद घनाक्षरी~
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमश: गुरू-लघु 15 बार आता है और अंत में 1 गुरू होता है ।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण। चारों चरण सम तुकांत
हैं गुरू वसंत पंत , नेह नेक सार संत ,
ज्ञान दान है अनंत , कुंज पुंज नूर हैं |
बात सार की सुभाष , शिष्य में रखें उजाश ,
चंद्र नेह के प्रकाश , आसमान सूर हैं ||
हाव भाव है अनूप , भूप रूप शीत-धूप ,
मेघ छाँव ज्ञान रूप , मात तात पूर हैं |
ज्ञान दान भूप मान , तीन लोक शान जान ,
फूल -सी सुगंध शान , मानिए न दूर है ||
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#रूपघनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 32 वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये ।अर्थात गाल होना चाहिए , विषम सम विषम वर्ण प्रयोग उचित नहीं है
चारों पद के अंत में समान तुक होता है
जनता लेकर नोट , जाती जब देने वोट ,
सहें लौटकर चोट, दिखें बड़े मज़बूर |
सही न जिनका कर्म , चाहते उनसे धर्म ,
नहीं समझते मर्म , अद्भुत यहाँ हुजूर ||
नेता चाहे पूरी शान , बना रहे मेरा गान ,
बाकी सब हो नादान , बना रहे मम नूर
बनें कहें हम आली , मेरे घर उजयाली
शेष रहें सब खाली , पर हम भरपूर ||
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#कृपाण घनाक्षरी
कृपाण घनाक्षरी – यह एक वर्णिक छंद है।इसमें कुल 32 वर्णों का प्रयोग होता है।इस छंद में 8,8,8,8 वर्णों पर यति होती है और प्रथम तीन यतियों पर अंत्यानुप्रास का प्रयोग होता है। चरणांत में गुरु लघु (ऽ।) वर्ण का प्रयोग अनिवार्य होता है
दिखें देश में जो माली , सही नहीं रखबाली ,
कोष करें सब खाली, फैलाते रहते खार |
गलत आदतें डालीं , भाषण में देते गाली ,
लोग बजा देते ताली, बढ़ती है तकरार ||
लगे बात भी वेमानी ,नेताओं की खोटी बानी ,
जिससे होती हानी , दूर रहे सब प्यार |
कौन यहाँ समझाए , सच पूरा बतलाए ,
यहाँ कौन भरभाए , मिले सदा अब हार ||
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#डमरू घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी 32 वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये अर्थात सभी वर्ण लघु होना चाहिये । चारों पद के अंत में समान तुक होता है ।़
हिमगिर हरिहर , बम बम कह नर ,
नमन चरण कर , हरषत रत मन , |
भजत रहत नर ,हिमगिरि हरिहर
नमन करत नर , शिव मग हर जन ||
भसम लिपट तन , रहत मुदित मन ,
गणपति सुत धन , वितरित निज पन
भजन करत जग , अमन चमन मग ,
धवल कमल पग ,सब कुछ अरपन ||
© सुभाष सिंघई
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#विजया घनाक्षरी- चरणांत लगा
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी पदो के अंत में लघु गुरू(12 ) या नगण 111)मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारों पद के अंत में समान तुक होता है
गिरिराज हिमालय , हिमगिरि है आलय ,
जाते शिव देवालय, बम बम ताल रहे |
तन पर मृग छाला , जटा जूट रुद माला ,
महादेव मृग छाला , चंद्र सदा भाल रहे ||
पूजा हित जन जाता ,बम भोला तब गाता ,
भक्ति शक्ति वह पाता, अनुपम ताल रहे |
बना रहे शुभ नाता , आए घर सुख साता
दास सुभाषा हो नाता ,चरणों की ढाल रहे ||
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#विजया घनाक्षरी- (नगण चरणांत )
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी पदो के अंत में लघु गुरू( १२) या नगण (१११)मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारों पद के अंत में समान तुक होता है
अंत नगण
सैनिक का धर वेश, रखकर आगे देश ,
दुश्मन रहे न शेष, बैसे आगे हो कदम ||
शत्रुु दल गाते गीत , बढ़ाते उनसे प्रीत
बने जो उनके मीत ,तोड़ो उनका वहम ||
धधकी दिल में आग , भारत को देते दाग ,
तोड़ दो उनका बाग , मत करना रहम |
समय सुभाषा आज , बचाना भारत लाज,
करो सदा ऐसे काज , जाएँ शत्रु भी सहम.||
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#देव घनाक्षरी
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 9 के क्रम में 33 वर्ण होते हैं । सभी पदों के अंत में नगण मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारों पद के अंत में समान तुक होता है ।
रहें सदा हिल मिल , नेक रखें हम दिल ,
सुखमय हर पल , भारत है सदा चमन |
जहाँ तहाँ हरियाली , प्रतिदिन है दीवाली ,
बजाते विजया ताली ,भारत में रहे अमन ||
सहज सजग हम , नहीं दिखें कुछ कम ,
हर पल हरदम , भारत सजग वतन |
शत्रु दल यह जाने, अंतरमन से माने ,
न्याय नीति पहचाने , कहता है सत्य कथन ||
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#सूर घनाक्षरी
(8,8,8,6 वर्ण चरणान्त में लघु या गुरु दोनों मान्य
हिमगिर शोभा न्यारी , रहे शिवा सुखकारी
जटा जूट शुभ धारी , बाधा हरते है |
जग ताप निकंदन , गणपति श्री नंदन ,
माता गौरा के आँगन ,खेला करते है ||
शिव सिर शोभे गंगा , दर्शन से मन चंगा ,
भसम भभूति रंगा , तन मलते है |
शरण सुभाषा पाता , आशीषें दें गौरा माता ,
कष्ट नहीं कोई आता , सब कहते है ||
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©®सुभाष सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई • )टीकमगढ़ म०प्र०
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़ (म० प्र०)
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से घनाक्षरी प्रकार को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर
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