घड़ियाली आँसू
लघुकथा
घड़ियाली आँसू
महेंद्र और रमेश में जमीन को लेकर वर्षों से दुश्मनी चल रही थी। एक दिन अचानक हृदयाघात से महेंद्र की मृत्यु हो गयी।
महेंद्र की शवयात्रा में रमेश को शामिल देखकर लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ। किसी परिचित ने तो पूछ ही लिया- ‘‘आप ! यहाँ कैसे ?’’
रमेश ने कहा- ‘‘दुश्मनी थी तो क्या ? अब, जब दुश्मन ही नहीं रहा, तो दुश्मनी कैसी ?’’
महेंद्र के बेटों को सांत्वना देते समय उसकी आँखों से झरझर आँसू बहने लगे।
घर लौटने पर रमेश के बेटे ने उनसे कहा- ‘‘बापू, आप तो बड़े एक्टर निकले।’’
रमेश ने कहा- ‘‘बेटा, आँसू ही तो निकले हैं ना। ये दुख के नहीं खुशी के थे। हमें टक्कर देने वाला तो गया, अब तालाब के किनारे वाली ज़मीन हो गयी हमारी।’’
उनकी हवेली दोनों के ठहाकों से गूँजने लगी।
– डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़