घटनाएं बोध जगाती है*
*दरिया को देख एक विचार आया,
बंद रेलवे फाटक को देख एक ख्याल आया
कभी टूटता तारा देख,
लोगों का कथन याद आया,
कभी उगते सूरज,
कभी डूबते सूरज का मिजाज याद आया,
कभी बिछुड़ो से प्यार आया,
कभी स्वदेशी चीज़ पर प्यार उमड़ आया,
नफ़रत कहां है तेरा वास,
क्या पड़ोस पड़ोसी तेरा उद्गम है ?
या फिर जड़ धर्म में है,
जो आदमी आदमी में इतना फर्क है,
कहीं जाति, कहीं वर्ण है,
अमीर-गरीब से बने वर्ग है,
.
वरन् हर आदमी की जरूरत,
रोटी, कपड़ा और मकान है,
इसमें भी बता कहाँ धर्म और,
कहाँ अधर्म है समाया,
.
कभी कभी
जब ख्याल से बाहर आता हु
मुझे संशय होता है,
क्या धर्म क्या पलायन,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,रेवाड़ी(हरियाणा)
बंद रेलवे फाटक पर जो समझ रखते है,
लाइनें बनाते है,
बाद में आने वाले नासमझ आगे स्थान पाते है,
और ऐसा लगता है,
कैसे पार होंगे सब,
लेकिन फाटक खुलते ही एक भी ठहरा नजर नहीं है आता,
.
नमो नम: ध्यान ही जीवंत है,