” गढ़ते नई कहानी हैं ” !!
मदहोशी का नशा चढ़ा तो ,
कहते इसे जवानी हैं !
लहरों का उन्माद यहाँ है ,
सिर पे चढ़ता पानी है !!
जब किशोर से हुए जवां तो ,
दुनिया लगे निराली है !
दर्पण रोज निखारे छवियाँ ,
जब भी नज़रें डाली है !
खुशबू जैसे डोला करते ,
खूब करें मनमानी हैं !!
सदा लक्ष्य हम यहाँ साधते ,
मंजिल आसां करने को !
पल पल भी अवसर देता है ,
बहुधा यहाँ सँवरने को !
नई नई ऊंचाई छूते ,
गढ़ते नई कहानी है !!
नशा चढ़े है हाला जैसा ,
सदा झलकता आँखों से !
उँची नित्य उड़ानें भरते ,
रोज मखमली पाँखों से !
बहुतेरे ग़ाफ़िल हो जाते ,
समय बड़ा तूफानी है !!
जैसे ढली जवानी जानो ,
हाथों एक पिटारा है !
यादों का गुलदस्ता संग है ,
नभ में ढलता तारा है !
रंग सिमटते से लगते हैं ,
दुनिया लगती फानी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )