ग्वालियर की बात
ग्वालियर की बात
ग्वालियर की बात, भाषा का अपना माहोल निराला है,
जैसे मधुर संगीत का, हर सुर में ताल मिला है।।
ब्रज की मधुरता, बुंदेली की सरलता,
दोनों का संगम, ग्वालियरी भाषा में मिलता है।।
शब्दों का चयन, लहजे का उतार-चढ़ाव,
हर बात में, ग्वालियर का अपना रंग दिखता है।।
कविता हो या गीत, कहानी हो या नाटक,
ग्वालियरी भाषा में, हर कला में दम दिखता है।।
महान रचनाकारों ने, इस भाषा को गढ़ा है,
अपनी प्रतिभा से, इसे समृद्ध बनाया है।।
आज भी, ग्वालियर की गलियों में,
इस भाषा का मधुर संगीत सुनाई देता है।।
ग्वालियर की बात, भाषा का अपना माहोल निराला है,
जैसे मधुर संगीत का, हर सुर में ताल मिला है।।
उदाहरण:
“बैठे हैं आजकल, ग्वालियर के किले की तलहटी में,
सोच रहे हैं, उन दिनों की बातें, जो बीते थे बचपन में।”
“ग्वालियर की गलियों में, घूमते हुए,
देखते हैं, लोगों को, जो व्यस्त हैं अपने काम में।”
“ग्वालियर के मंदिरों में, जाते हैं, प्रार्थना करते हैं,
भगवान से, सुख और समृद्धि के लिए।”