गौरी गंगा बीच में
गौरी गंगा बीच में,करती है अब योग।
किस विधि अब उसके कटें,छूटें सारे रोग।।
छूटें सारे रोग, हुई जो मन से घायल।
छोड़ दिया सब साज,तजे हैं बिंदिया पायल।।
कहै अटल कविराय,होय कैसे मन चंगा।
दुआ रही है मांग,कष्ट हर ले सब गंगा।।
गौरी गंगा बीच में,करती है अब योग।
किस विधि अब उसके कटें,छूटें सारे रोग।।
छूटें सारे रोग, हुई जो मन से घायल।
छोड़ दिया सब साज,तजे हैं बिंदिया पायल।।
कहै अटल कविराय,होय कैसे मन चंगा।
दुआ रही है मांग,कष्ट हर ले सब गंगा।।