Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Jan 2024 · 4 min read

गोस्वामी तुलसीदास

अयोध्या की यात्रा गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण के बिना पूरी नहीं हो सकती है । लोक ग्रन्थ के रूप में मान्य व अति लोकप्रिय महाकाव्य रामचरितमानस, जिसे विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वाँ स्थान प्राप्त है, के कारण विशेष ख्याति गोस्वामी जी को प्राप्त है। राम के चरित्र का चित्रण तुलसीदास जी इस प्रकार किया है, जैसे वह उनके साथ – साथ रहे हों । ऐसा माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास की मुलाकात श्री राम से हनुमान जी के सहयोग से चित्रकूट में हुई थी । इस सम्बन्ध में जो कथा प्रचलित है, वह बड़ा ही रोचक है । तुलसीदास जब काशी में जब वहां के लोगों को राम कथा सुनाने लगे, इसी दौरान उन्हें मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने गोस्वामी जी को हनुमान ‌जी का पता बतलाया। हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास जी ने राम जी का दर्शन कराने का अनुरोध किया । हनुमान जी ने तुलसीदास जी को बताया कि श्री राम के दर्शन चित्रकूट में होंगें। चित्रकूट पहुँच कर गोस्वामी जी ने वहां के रामघाट पर अपना आसन जमाया। यहीं पर एक दिन उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदास उन्हें देखकर बेहद आकर्षित हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके। हनुमान जी ने पीछे से आकर बताया यही तो प्रभु श्री राम थे। तुलसीदास जी यह जानकर पश्चाताप करने लगे। दुखी देख हनुमान जी ने उन्हें सात्वना देते हुए कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे। तिथि तो पुष्ट नहीं है, पर मान्यता है संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को उनके समक्ष श्री राम जी एक बालक के रूप में प्रकट हुए। श्री राम ने तुलसीदास से कहा- ‘बाबा, हमें चन्दन चाहिए, क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं ?’ तुलसीदास फिर से भ्रमित न हो जाएं, हनुमान ‌जी को ऐसी शंका थी । वह सीधे-सीधे कैसे कह सकते थे, यह चन्दन की कामना करने वाला ही श्री राम हैं। ऐसे में हनुमान जी ने एक तोते का रूप धारण करके कहा –
चित्रकूट के घाट पर भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुबीर॥
फिर क्या था, तुलसीदास जी श्री राम की अदभुत छवि देखकर सुध-बुध खो बैठे । कथा है, ऐसी स्थिति में श्री राम ने स्वयं चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए ।
तुलसीदास जी को आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि तुलसीकृत रामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है।
गोस्वामी तुलसीदास का जन्मस्थान तथा जन्म तिथि के सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है। फिरभी, तुलसीदास का अयोध्या, चित्रकूट तथा काशी से सम्बन्ध निर्विवाद है। अधिकांश विद्वानों व राजकीय साक्ष्यों के अनुसार इनका जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के सोरों- शूकरक्षेत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० आत्माराम दुबे व माता के नाम हुलसी था। सोरों एक सतयुगीन तीर्थस्थल शूकरक्षेत्र है। ऐसा भी माना जाता है कि जन्म तुलसीदास जी चित्रकूट के राजापुर में हुआ था । इनका जन्म संवत् 1554 में श्रावण शुक्ल सप्तमी को मूल नक्षत्र में होना बताया जाता है । बारह माह गर्भ में रहने के बाद जन्मे तुलसीदास के बत्तीसों दांत जन्म के समय मौजूद थे । जन्म के समय वह रोये नहीं, अपितु उनके मुख से ‘राम’ का शब्द निकला । और इस कारण नाम पड़ा ‘रामबोला’ । शूकरक्षेत्र में पाठशाला चलाने वाले गुरु नृसिंह चौधरी ने इनका नाम तुलसीदास रखा। दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से इनका विवाह हुआ था । रत्नावली से मिलन का एक रोचक प्रसंग भी जन-मानस में रेखांकित किया जाता है । कहते हैं रत्नावली के पीहर चले जाने पर तुलसीदास रात में ही गंगा नदी को तैरकर पार करके ससुराल (स्थान- बदरिया, शूकरक्षेत्र- सोरों) जा पहुंचे। इस घटना से रत्नावली लज्जित होकर इन्हें काफी खरी-खोटी सुनाई । रत्नावली ने कहा- ‘ मेरे इस हाड़-मांस के शरीर में जितना तुम्हारी आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता ।‘ मान्यता है रत्नावली के इस प्रकार के कटु वचनों को सुनकर तुलसीदास जी के मन में वैराग्य के अंकुर निकले और 36 वर्ष की आयु में शूकरक्षेत्र- सोरों को सदैव के लिए त्याग दिए और प्रयाग चले गए, जहाँ उन्होंने गृहस्थवेश का परित्याग कर साधुवेश धारण किया। वैराग्य का यह कालखण्ड तुलसीदास को भविष्य में एक नए वैश्विक पहचान दिलाने का कारण बना ।
इस महान शब्द चितेरे ने अपने अनुमानित 126 वर्ष के सुदीर्घ जीवन-काल में कई कालजयी ग्रन्थों का प्रणयन किया, जिनमें गीतावली, कृष्ण-गीतावली, रामचरितमानस, पार्वती-मंगल, विनय-पत्रिका, जानकी-मंगल, रामललानहछू, दोहावली, वैराग्यसंदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, सतसई, बरवै रामायण, कवितावली, हनुमान बाहुक, हनुमान चालीसा का नाम लिया जाता है । तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के सम्बन्ध में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है जिससे इनकी प्रामाणिक रचनाओं के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। बावजूद इसके तुलसीदास जी सम्पूर्ण विश्व में किसी-न-किसी रूप में सबके प्रिय हैं । माना जाता है कि संवत् 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया को तुलसीदास जी ने ‘राम-राम’ कहते हुए काशी के असी घाट पर अपने शरीर का परित्याग किया था

1 Like · 2 Comments · 220 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
View all
You may also like:
कभी कभी लगता है की मैं भी मेरे साथ नही हू।हमेशा दिल और दिमाग
कभी कभी लगता है की मैं भी मेरे साथ नही हू।हमेशा दिल और दिमाग
Ashwini sharma
हैप्पी नाग पंचमी
हैप्पी नाग पंचमी
Ranjeet kumar patre
" अलबेले से गाँव है "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
ग़ज़ल _ मुकद्दर की पहेली 🥰
ग़ज़ल _ मुकद्दर की पहेली 🥰
Neelofar Khan
अभी कहाँ आराम, परम लक्ष्य छूना अभी।
अभी कहाँ आराम, परम लक्ष्य छूना अभी।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
बचपन से जिनकी आवाज सुनकर बड़े हुए
बचपन से जिनकी आवाज सुनकर बड़े हुए
ओनिका सेतिया 'अनु '
शब की ख़ामोशी ने बयां कर दिया है बहुत,
शब की ख़ामोशी ने बयां कर दिया है बहुत,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हर तरफ़ घना अँधेरा है।
हर तरफ़ घना अँधेरा है।
Manisha Manjari
खालीपन – क्या करूँ ?
खालीपन – क्या करूँ ?
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"घर की नीम बहुत याद आती है"
Ekta chitrangini
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
हिंदी हमारे देश की एक भाषा मात्र नहीं है ,
हिंदी हमारे देश की एक भाषा मात्र नहीं है ,
पूनम दीक्षित
पतंग*
पतंग*
Madhu Shah
दूसरों की लड़ाई में ज्ञान देना बहुत आसान है।
दूसरों की लड़ाई में ज्ञान देना बहुत आसान है।
Priya princess panwar
मैं जिन्दगी में
मैं जिन्दगी में
Swami Ganganiya
" कमाल "
Dr. Kishan tandon kranti
मुझमें मुझसा
मुझमें मुझसा
Dr fauzia Naseem shad
Ranjeet Kumar Shukla- kanhauli
Ranjeet Kumar Shukla- kanhauli
हाजीपुर
*शिवोहम्*
*शिवोहम्* "" ( *ॐ नमः शिवायः* )
सुनीलानंद महंत
राह हमारे विद्यालय की
राह हमारे विद्यालय की
bhandari lokesh
A Picture Taken Long Ago!
A Picture Taken Long Ago!
R. H. SRIDEVI
कल?
कल?
Neeraj Agarwal
3739.💐 *पूर्णिका* 💐
3739.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
"जीवन का सच्चा सुख"
Ajit Kumar "Karn"
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
गंगा- सेवा के दस दिन (नौंवां दिन)
गंगा- सेवा के दस दिन (नौंवां दिन)
Kaushal Kishor Bhatt
पद्धरि छंद ,अरिल्ल छंद , अड़िल्ल छंद विधान व उदाहरण
पद्धरि छंद ,अरिल्ल छंद , अड़िल्ल छंद विधान व उदाहरण
Subhash Singhai
मौन
मौन
लक्ष्मी सिंह
*कब किसको रोग लगे कोई, सबका भविष्य अनजाना है (राधेश्यामी छंद
*कब किसको रोग लगे कोई, सबका भविष्य अनजाना है (राधेश्यामी छंद
Ravi Prakash
"जलाओ दीप घंटा भी बजाओ याद पर रखना
आर.एस. 'प्रीतम'
Loading...