*गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)*
गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल (कुंडलिया)
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गोरे-गोरे हाथ जब, मलने लगे गुलाल
प्रिय की मादक गंध से, प्रियतम हुआ निहाल
प्रियतम हुआ निहाल, बंद नयनों से पाया
कोमल कुछ अहसास, फागुनी रसमय काया
कहते रवि कविराय, रहे कब फिर दो कोरे
मिली श्वास से श्वास, रंग श्यामल अब गोरे
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451