गोरे मुखड़े पर काला चश्मा
गोरे मुखड़े पर काला चश्मा
क्या खूब फबता है,
जैसे तीन चांँद जैसा सुंदर मुखड़ा,
पहले से हो,
ऊपर से काला चश्मा,
चार चांँद लगाता है।
हम भोले-भाले-काले,
कभी खुद को
तो कभी बनाने वाले को
कोसते हैं,
काले चश्मे वाले को देख,
अपनी किस्मत पर रोते हैं।
पर कभी चश्मे के पीछे से जाकर देख,
वह गोरा मुखड़ा खुद को छोड़
पूरी दुनियांँ को काला देखता है,
कभी निरीह जानवर
तो कभी फुटपाथ पर सोए
गरीबों को रौंदता है,
कभी मादक द्रव्य, देह व्यापार में
पकड़ा जाता है।
ऐसे गोरे मुखड़े पर
काला चश्मा से अच्छा
हमारा कला मुखड़ा
पर दिल का सच्चा।
(मौलिक व स्वरचित)
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)