गोपी-विरह
रात-दिन बरसेला
काली बदरिया
जब से बिछड़ले हो
हमसे सांवरिया…
(१)
ना सूझेला कवनो
अब राह हमके
बीतल अंजोरिया
आईल अन्हरिया…
(२)
कुहुकेले कोइलर
गावेला पपीहा
रह-रहके उठेला
जिया में लहरिया…
(३)
चारू ओर बिखरल
जहां याद उनके
हम कईसे जाईं
वो जमुना कगरिया…
(४)
ऊ एतना कसके
ठोकर लगवले
हमरा करमवा के
फूटल गगरिया…
(५)
सरगम से जेकरा
खिलत रहे मधुवन
भईल अब सपना
उनके बांसुरिया…
(६)
अब का चढ़ी एइपे
कवनो रंग दोसर
गइले ऊ रंग के
कोरी चुनरिया…
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Shekhar Chandra Mitra
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