गोपाल हूं मैं, काल भी
गोपाल हूं मैं, काल भी
अनंत नृत्य ताल भी,
मैं कल्पना, मैं कामना
मैं कृष्ण, मैं स्थापना
मैं चेतना, मैं शुद्ध हूं,
मैं धर्म, मैं ही बुद्ध हूं।
सत्य हूं, मैं झूठ भी
मैं स्वच्छ, मैं ही कूट भी।
कुकर्म पर मैं भार हूं
सुकर्म पर सवार हूं
रहस्य का संसार हूं
भविष्य के भी पार हूं।
स्वार्थ हूं, परार्थ भी
मैं शक्ति, मैं पदार्थ भी
क्रोध का उबाल भी
अभेद छल का जाल भी
प्रेम हुं, कृपाल भी,
हे पार्थ! मैं गोपाल ही।।
— Saransh Singh ‘Priyam’