गोंडीयन विवाह रिवाज : लमझाना
लमझाना व्यवस्था
लमझाना की उत्पत्ति ऐसे हुई कि, मान लीजिए किसी दंपति के यहां केवल पुत्रियां संतान ही है । पुत्र संतान नहीं है या ऐसे दंपत्ति जो अभी बूढ़े हो चले और उनका पुत्र संतान अभी अल्प आयु का है जो अभी अबोध है काम धंधा नही कर सकता तो उपरोक्त दोनों स्थितियों का हल निकालने के लिए लमझाना व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ । जिससे कि ऐसे दंपत्ति जिन्हे पुत्र संतान के अभाव में कई तरह की समस्याएं अपने रोजमर्रा की जीवनशैली में आती थी जैसे कृषि कार्य में हाथ बंटाना, जंगलों से जलावन हेतु लकड़ियां लाना, गांव से दूर शहर जाकर किराना लाना तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं लाना इत्यादि कार्य जैसे जिम्मेदारियां अक्सर पुत्र के ही माथे होती है । इन सबका निर्वहन करने के लिए लमझाना आए लड़के को करना पड़ता था । इससे सकारात्मक बिंदु ये निकलकर आती थी कि ऐसे लोग जो बेटियों के पैदा हो जाने पर अपनी नाक भौं सिकोड़ते है, उनके पैदा होने पर ज्यादा खुश नही होते है या अगर ज्ञात हो कि आने वाली संतान पुत्री है इससे पहले ही उन्हें कोख में ही मार देते है उनके लिए ये करारा जवाब है । इस व्यवस्था से हर लड़की के पिता को सताने वाली जो चिंता है वो दहेज की है इस व्यवस्था से निजात पाया जा सकता है और जो लोग सोचते है कि बुढ़ापे की लाठी सिर्फ पुत्र ही होता है । तो इसी रिक्तता की पूर्ति हेतु लमझाना व्यवस्था बहुत ही अच्छी व्यवस्था है ।
लमझाना व्यवस्था का प्रारंभ कब हुआ ये तो बताना मुश्किल है परंतु इस व्यवस्था की शुरुआत ऐसे होती है कि ऐसे अविवाहित व्यस्क या बालक जो पोरी पंछी हो याने अनाथ हो, जिन दंपत्तियो के यहां एक से अधिक पुत्र संतान हो तो वो किसी एक पुत्र को लामझाना भेज देते है । इसका दूसरा पहलू इस बात से भी आंका जा सकता है कि आज से सैकड़ों वर्ष पहले जब भुखमरी की स्थिति हुआ करती थी रोजी रोटी के साधन कम हुआ करते थे, जमीन बंजर हुआ करती थी, प्रत्येक घर में खाद्यान्न का अभाव रहता था तो इससे उबरने के लिए परिवार इधर उधर काम की तलाश में पलायन करते थे । जिसे जहां काम मिल जाता या ऐसे घर में काम मिल जाता जहां अच्छी खासी जमीन जायदाद हो और करने वाला कोई वारिस पुत्र न हो केवल पुत्रियां हो ऐसे जगह काम मिलना तो मानो जीवन भर की रोजी मिलना जैसी बात है । गोंडी भाषा में इस स्थिति के लिए एक प्रसिद्ध मुहावरा प्रचलित है ” रोटी की रोटी भी और साथ में बेटी कि बेटी भी ” याने रोजी रोटी के साथ जीवन साथी के रूप में लमझाना रखने वाले की पुत्री से विवाह भी हो जाता है ।
ज्ञात हो कि यह व्यवस्था जैसे सभी के मन में आ रहा होगा कि ये तो सारा का सारा घर जमाई जैसे व्यवस्था हो गई लेकिन ऐसा नहीं है । लमझाना में यह नियम है कि एक बार आप लमझाना चले गए किसी के घर तो आपको जीवन पर्यंत आपके सास ससुर की सेवा चाकरी करनी पड़ेगी और यदि आपके छोटे छोटे साला या साली है तो आपकी ये जिम्मेदारी और जवाबदारी भी है कि आप इनका एक पिता की तरह पालन पोषण, देखभाल और उनका जाति रीति रिवाज के साथ विवाह आदि जिम्मेदारी भी आपको वहन करना पड़ेगा । क्योंकि आप आपके ससुर के संपत्ति संपदा के वारसन जो हो चुके ।
वैसे आजकल ये व्यवस्था धीरे धीरे लोप होता जा रहा है परंतु आज भी हमारे पुराने दादा परदादा के पास लमझाना से प्रदत्त जमीन आज भी है जिस पर हम अभी भी काश्तकारी कर रहे है ।