गैर
लिख-लिख कर यूँ दिल की बात ,गम के साये हटाते हैं
है कितनी मोहब्बत तुमसे, हर बार ये जताते हैं
हमने तो बस इक तुम्हे ही ,अपना माना है ‘देव’
और आप हैं कि, अब भी हमें गैर बताते हैं
लिख-लिख कर यूँ दिल की बात ,गम के साये हटाते हैं
है कितनी मोहब्बत तुमसे, हर बार ये जताते हैं
हमने तो बस इक तुम्हे ही ,अपना माना है ‘देव’
और आप हैं कि, अब भी हमें गैर बताते हैं