गैर संग प्रीत हुई पराई
*** गैर संग प्रीत हुई पराई **
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हिचकी के साथ याद है आई,
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
हाथ न आया वो पल सुहाना,
काम न आया बनाया बहाना,
देता रहा दिल दर्द ए जुदाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
कसमें – वादे निभा नहीं पाए,
दो तन एक जान हुए पराए,
आँसुओं भरी हमारी विदाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
दुश्मन है प्रेमियों का ज़माना,
आधा-अधूरा रहे प्रेम तराना,
मोहब्बत की अधूरी पुरवाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
कोई नहीं यहाँ मीत सहारा,
प्यार का पंछी सदा बेसहारा,
रीति-रिवाज़ों में फंसी रिहाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
मनसीरत मन बड़ा अनुरागी,
गली-गली भटके बन वैरागी,
हिस्से में आई हमारे तन्हाई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
गैर संग प्रीत हुई थी पराई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)