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25 Dec 2024 · 17 min read

गृह त्याग

हालात मनुष्य को बहुत कुछ सीखने को बाध्य कर देता है।
जिस जिंदगी में विरोधी नहीं होंगे वह जिंदगी संघर्षशील और प्रगतिशील नहीं हो सकती।
रामाशंकर को मैट्रिक पास हुए अभी कुछ दिन ही हुआ था कि एकदिन एक छोटी सी बात पर मामला ऐसा उलझा था कि उसे घर को छोड़ दर-दर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ा था.रामा शंकर का एक छोटा भाई था- अभय शंकर. वह छोटा होकर भी रामा शंकर से सर्वदा लड़ाई- झगड़ा करते रहता था.रामा शंकर छोटा भाई के कारण उसका हर बदतमीजी को बर्दास्त कर लेता था। लेकिन उस दिन अभय ने रामा शंकर के साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार किया था फिरभी उनके पिता राधाकांत जी अभय शंकर को डाटने के बजाय रामाशंकर को गुस्से में बहुत कुछ बोल गए थे। उन्होंने क्रोध में यह भी कह दिया था कि उसे जहां जाना है,जाए। मेरा घर द्वार छोडकर अभी चला जाए। जबकि ऐसा व्यवहार अभय शंकर के साथ होना चाहिए था। यद्यपि उसकी उदंडता और मनबढूपन को सब जानते-समझते थे फिर भी माता-पिता एवं उसके सगे संबंधी उससे उलझना नहीं चाहते थे। उसके माता-पिता अभय की गलती के बाबजूद रामाशंकर को उस दिन खूब डाट लगाई गयी थी, जो रामा शंकर को बर्दास्त नहीं हो सका। माँ, शकुंतला देवी, जानती थी कि हमेशा गलती अभय शंकर करता है लेकिन मार-डाट का शिकार सीधा-साधा रामाशंकर बन जाता है। उसकी माँ को इस बात का हमेशा दुःख होता था। गाँव घर के लोग कहा करते थे कि अभय शंकर के चाल-चलन से एक दिन न दिन घर पर संकट के बादल अवश्य मडरायेगा।
जिस दिन वह घटना हुई थी,गरमी का मौसम था।बेशुमार गरमी से सभी बेचैन थे। बिजली कटी हुई थी।कोई ताड़ के पंखा को डूला रहे थे तो कोई गमछा से ही हवा उत्पन्न कर गरमी से राहत पाने में लगे थे लेकिन रामाशंकर को गरमी महसूस नहीं हो रहा था। क्रोध में लोग जाडा, गरमी,वर्षा सब भूल जाता है. डाट – फटकार सुनने के बाद रामाशंकर घर के अंदर गया। माँ चुल्हानी में चली गयी और खाना बनाने में व्यस्त हो गयी.l। सोची,रात में रामा शंकर को समझाऊँगी –“ बेटा, तुम ही तो मेरे बुढापा का सहारा हो,आशा का किरण हो। तुम तो जानते हो मेरे कोख से एक कंश का जन्म हुआ है। अभी तो बच्चा है लेकिन उसका हर काम दुष्टता से भरा होता है। वह दुर्योधन है दुर्योधन। वह पूरे घर को नाश करके ही मानेगा। तुम्हारे पिताजी बुरे नहीं हैं लेकिन वे अभय से कुछ बोलकर बेईज्जती उठाना नहीं चाहते हैं। तुम्हे ही बोल-भुक कर अपना दिल को शांत कर लेते हैं.” खाना बनाती हुई माँ अपने बेटे रामा शंकर को समझा ने के लिए सोच रही थी।
होने के लिए तो ऐसी घटना बहुत बार हो चुकी थी लेकिन कभी-कभी होनी प्रबल हो जाती है। घर के अंदर जाकर रामा शंकर एक पुराना-धुराना बेग खोजा।उसमे कुछ जरूरी किताब को रखा, स्कूल से जो अपना मार्क शीट, स्कूल लिविंग और चरित्र प्रमाण-पत्र लाया था उसे भी संभाल कर बेग में रखा, एक बेड शीट के साथ अपना थोड़ा कपड़ा भी रख लिया था. स्कूल जाने के समय पिता से मिले कुछ पैसा बचाकर जो रखा था, उसे भी ले लिया और पिछुती के रास्ते घर छोड़ कर अनजान डगर पर चल दिया था। तब तक अन्धेरा घना हो चुका था। घर से निकला और तूफ़ान भरा दिमाग को लेकर उस जगह पर पहुंचा जहां से पटना के लिए सबारी मिलती थी. बस पकड़ा और सीधे पटना जंक्सन पहुँच गया। स्टेशन पहुँचने पर उसके सामने एक यक्ष प्रश्न खडा हो गया। जाएँ तो जाएँ कहाँ।फिर दिल ने कहा- भटकना ही है तो बड़े शहर में ही क्यों न भटकें?
पूछताछ खिडकी पर जाकर पूछा – “दिल्ली जाने के लिए गाड़ी कब मिलेगी?”
“सुबह पांच चालीस में.” खिडकी के अंदर से एक आदमी की आवाज आयी.
“सुबह ! अरे बाप ! इतना समय बाद.” उदास होकर खिडकी से लौट गया।उस समय रात्रि के दस बज चुके थे। प्रतीक्षालय के बाहर खुले जगह पर कुछ मुसाफिर सोये हुए थे। कोई पैर समेटकर कोई पैर फैलाकर, कोई गया। किसी के शरीर से सटा-सटा। कोई बेड सीट बिछाकर तो कोई लम्बा चौड़ा पन्नी बिछाकर और कोई भुईन्या पर पहले से लेटा हुआ था। रामा शंकर भी खुले में एक खुला जगह पर बेडशीट बिछाकर लेट गया। ऊपर आकाश में अनंत तारे टिमटीमा रहे थे। दिन भर का हलचल थोड़ा थमता सा नजर आ रहा था। उमस भी थोड़ा कम गया था क्योंकि थोड़ी –थोड़ी हवा चलने लगी थी. रामा शंकर एक टक आकाश की ओर देख रहा था और उसके अंदर तूफ़ान चल रहा था। आँख से आंसू निकल रहे थे। एक मन होता –घर लौट चलते हैं. एक मन करता – चलो, आज अपना इहलीला समाप्त कर देते हैं। एक मन करता – चलते हैं और अभय शंकर से पापाजी के सामने उससे उगलबा देता हूँ कि गलती किसकी थी? एक मन करता – यदि बाहर निकल गया हूँ तो अब कामयाब होकर ही घर लौटूंगा चाहे इसके लिए जितना संघर्ष करना होगा, करूँगा। एक मन करता – अभी मैं इतना बच्चा हूँ , मैं कर भी क्या सकता हूँ.? फिर अचानक विचार आया – टिकट का पैसा नहीं है फिर दिल्ली कैसे जाउंगा. अशांत मन ने जबाब दिया- बिना टिकट के गाड़ी पर चढ जा. टी.टी.ई . आयेंगे, टिकट मांगेंगे,तुम नहीं दिखलाओगे, तुम्हे गिरफ्तार कर जेल भेज देंगे, वहाँ कुछ लोगों से परिचय हो जाएगा और उतना दिन फ़ोकट में खाना-दाना,ओढना-बिछौना मिल जाएगा

नहीं, यह अच्छा नहीं होगा। ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं है। फिर दिल ने दिलासा दिया- ट्रेन पर चढ जा, टी.टी.ई जब आएँ सही सही बात बता देना। उनको भी तो बाल- बच्चा तो होगा ही, कह देना फूफा के यहाँ जा रहे हैं , छोड़ देंगे। भगवान पर भरोसा कर, अभी सो जा सुबह उठकर रेल गाड़ी पकड़ लेना। शरीर के रक्त प्रवाह में थोड़ा आशा प्रवाहित होता महसूस हुआ। अभी आँख लग रही थी कि मच्छर महाराज का उत्पात शुरू हो गया। किसी तरह आँख मूंदे रहा। कभी कोई पैर के नजदीक से गुजरता, कभी कोई सर के नजदीक से निकलता और उसकी आँख खुल जाती। कभी कभी जब किसी गाड़ी के आने के घोषणा होती, अगल बगल के यात्री हडाबड़ाकर उठते और उसकी नींद खुल जाती।फिर अपनी आँखें मूंद लेता। कभी-कभी ऐसा लगता उसके पिताजी उसकी बांह को पकड़ के उठा रहे हैं और कह रहे हैं- यहाँ क्या कर रहा है, चलो घर चलो।कब भोर हो गया रामाशंकर को पता न चला।
अचानक रामा शंकर के कान में आवाज आई- अटेंशन प्लीज, पटना से मुग़लसराय,इलाहाबाद,कानपुर,अलीगढ़ के रास्ते नई दिल्ली को जाने वाली पटना दिल्ली एक्सप्रेस दो नंबर पलेट फॉर्म पर आ रही है। यह सुनते रामाशंकर हडबडाकर उठा और भगवान का नाम लेकर एक रिजर्ब डिब्बा पर चढ गया।उसे जेनरल, ए.सी. रिजर्ब का कोई पता न था। डिब्बा में कम लोगों को देखकर उसे लगा जैसे इतना सुबह सफर कौन करता है ? रात भर जो रोया था उससे उसकी आँखों में सूजन आ चुका था। सामने के सीट पर बैठा आदमी उससे पूछा – “तुम अकेले हो ? “
“जी, हाँ.” रुआनी आवाज में रामा शंकर बोला.
“टिकट है ?”
“जी, नहीं।”
“कहाँ जाओगे ?”
“दिल्ली।”
“वहाँ कोई तुम्हारा है?”
“जी, नहीं।” इतना बोलने के बाद वह अपने को संभाल न सका। वह फूट-फूट कर रोने लगा। तबतक गाड़ी खुल चुकी थी।
“चुप हो जाओ, चुप हो जाओ,मैं तुम्हारा दिल दुखाने के लिए कुछ नहीं पूछा था। जब रामाशंकर चुप हो गया, तब उस यात्री ने फिर पूछा – पढते हो?
“जी. अभी मैट्रिक पास किया हूँ।“ अपने बेग से अपनी बात की सत्यता साबित करने के लिए तीनों प्रमाण –पत्र दिखलाते हुए आगे बोला- “सर, मेरी कोई गलती नहीं थी। जो किया था मेरा छोटा भाई किया था। लेकिन पिताजी मुझे काफी मारे पीटे और घर से निकल जाने को कह दिया। मैं भी चुपके से घर से निकल गया। अब जो किस्मत में होगा वह सह लूंगा ।” इतना बोलकर फिर सिसक-सिसक कर रोने लगा।
“ढाढस रखो। भगवान पर भरोसा रखो, सब ठीक हो जाएगा।” इतना बोलकर चार पूडियां और थोड़ा भूंजिया अपने झोला से निकाला और उस यात्री ने उसे देते हुए बोला – “ इसे खा लो, तुम कल शाम से भूखे हो।” पूड़ी और भुजिया को देख रामाशंकर को अतुल आनन्द की प्राप्ति हो रही थी। उसे उस व्यक्ति में भगवान का रूप दिखलाई देने लगा था। दोनों हाथ बढ़ाकर रामा शंकर पूड़ी और भुंजिया लेकर अभी खाना शुरू ही किया था कि उजला फूलपैंट और काला कोट पहने हाथ में कुछ कागज़ का पुलिंदा लिए टी.टी.ई आ गए।
“तुम्हारा टिकट ?” टी.टी.ई ने पूछा।
“जी, मेरे पास टिकट नहीं है।”
“तो तुम गाड़ी पर कैसे चढ गया ?”
“बच्चा जानकर माफ कर दीजियेगा या बिदाउट टिकट में मुझे जेल भेज दीजियेगा। दोनों में मेरी भलाई होगी। छोड़ दीजियेगा तो संघर्ष करके खाऊंगा और जेल भेज दे दीजियेगा तो बिना संघर्ष के खाना और सोना हो जाएगा। “ दोनों हाथ जोडकर प्रार्थना करते हुए रामा शंकर बोला।
“तुम ऐसा काम किया ही क्यों था कि दोनों स्थिति तुम्हारे लिए भलाईवाला होगा ? टी.टी.ई ने पूछा।
फिर वह फफक-फफक कर रोने लगा। उस मुसाफिर ने चुप कराते हुए कहा-
“यह बच्चा घर से भाग कर आया है ।इसे मोरली सपोर्ट करने की जरुरत है। इसका टिकट बना दीजिए मैं उस राशि को अदा कर देता हूँ।” सामने वाला यात्री टी.टी.ई. से बोला।
“उस बच्चे की बात सुनकर सभी यात्रीगण मुग्ध थे। टी.टी.ई मुस्कुराते हुए बोला- “ठीक है, मैं तुम्हे संघर्ष करके खाने के लिए छोड़ देता हूँ। इस सीट पर जो आयेंगे उनको मैं कह दूंगा। तुम्हे दिल्ली तक साथ लेकर जायेंगे।”
जाते- जाते उस मुसाफिर की ओर मुखातिव होकर टी.टी.ई बोले-“ मैं आप जैसे सहानुभूतिशील लोगों का दिल से कद्र करता हूँ। आप ही जैसे लोगों से यह दुनिया चल रही है। आपको मैं इस पुनीत कार्य के लिए धन्यवाद देता हूँ। आपको राशि अदा करने की जरुरत नहीं है .दिल्ली तक मैं इस बच्चा को सपोर्ट करता हूँ आगे आप कीजिये ।”
उधर पटरी पर रेल गाड़ी सरपट दौड रही थी और उधर रामा शंकर के घर पर उसकी खोज जारी थी। किसी को क्या पता कि वह छोटा सा बच्चा उतना बड़ा शहर दिल्ली का रुख करेगा ? रात भर खोजबीन जारी रहा, सभी संभावित जगह पर खोजा गया लेकिन कहीं अता- पता नहीं था। सभी लोग खोज-ढूंढ कर हार चुके थे, सभी लोग उसका और ठिकाने पर विचार कर रहे थे। तभी उसके पिता राधा कान्त जी बोले- “देखना, कहीं भी गया है, भूख की आग और लोगों का धक्का लगेगा तब उसका दिमाग ठिकाने लग जाएगा तब वह खुद-व- खुद दो चार दिन में आ जाएगा।” अपने पति की बात सुनकर शकुंतला देवी बोली- “आप हमेशा उसे कमजोर समझ कर अकारण मारते डांटते थे। गलती किसी की रहती थी आप हमेशा उस सीधा-साधा लड़का को बोलते थे। आज मजा चखा दिया न? मैं अपने रामाशंकर को भली भाँती को जानती हूँ। वह जब लौटेगा तो कामयाब होकर ही लौटेगा वह ऐसे नहीं लौट सकता।” अपनी पत्नी की बात उन्हें अनर्गल लग रही थी। फिरभी उन्होंने कहा- “ हो सकता है वह किसी रिश्तेदार के यहाँ चला गया हो , खोजबीन जारी रखना है। इसपर अभय शंकर बोला- “ हाँ,हाँ पापा ठीक बोलते हैं।दो चार जगह धक्का-मुक्का खायेगा, होश ठिकाने लग जाएगा और भैया स्वय आ जाएगा।”
गाड़ी दिल्ली पहुँचने वाली थी। जैसे-जैसे गाड़ी दिल्ली के नजदीक आ रही थी वैसे-वैसे रामा शंकर का हिम्मत और हौसला दूर भागता नजर आ रहा था। न कोई ठौर न कोई ठिकाना। स्टेशन पर उतर कर कहाँ जाउंगा, क्या करूँगा ? अभी वह गंभीर सोच में डूबा ही था कि उसके सामने वाला उस यात्री ने कहा- “ देखो, अब स्टेशन आ रहा है। तुम्हारा कोई जान -पहचान वाला यहाँ कोई है ?”
“जी नहीं।”
“तो कहाँ जाओगे?”
“पता नहीं, जहां किस्मत ले जाए।”
“तुम मेरे साथ चलोगे? मेरे यहाँ तुम्हे रहने खाने को मिल जाएगा केवल तुम्हे मेरे काम में मदद करना होगा पढाई –लिखाई , हिसाब –किताब के काम में?”
“हाँ, हाँ , तब तो मैं चलूँगा । आप तो मेरे लिए ईश्वर से भी बढकर हैं।”
दोनों स्टेशन पर उतरे और साथ चल दिए। एक अनजान डगर पर और एक इंसानियत के डगर पर।
उस रात को जब रामा शंकर दो दोस्तों के साथ होटल में खा रहा था तो एक युवक उसे बार- बार देख रहा था और मन ही मन बोल रहा था – “ई रम शंकरा है का ? देखने में तो वही लगता है। कैसे पूछें ? “ जब सामने नजर किया तो रामा शंकर की नजर उस युवक की ओर चली गयी। अपने टेबुल से उठा और उस युवक के पास जाकर बोला- “माफ कीजियेगा, आप का नाम सुरक्षित तो नहीं ?”
वह युवक हंसते हुए उठा और मुस्कुराते हुए बोला- “ अरे, तुम रामाशंकर ? मैं बहुत देर से तुम्हे देख-देख यही सोच रहा था। लेकिन मैं तुझे नहीं टोका कि इस बड़े दिल्ली शहर में तुम्हारे जैसा और भी हो सकता है ।आठ वर्ष बाद देख रहा हूँ ,न।”
“आओ, अब हमलोग एक साथ खाते हैं, एक ही टेबुल पर.” राम शंकर बोला।
“लेकिन, ये दोनों ? सुरक्षित उन दोनों की ओर इशारा करते हुए पूछा।
“ यह दोनों मेरा जूनियर है ” ऐसा बोलते हुए रामा शंकर ने सुरक्षित के बारे में बतलाया कि वह उसका ग्रामीण के साथ साथ क्लास मेट भी है। फिर चारो खाना खाने में व्यस्त हो गए।
“तुम यहाँ कैसे-कैसे?” खाना खाते-खाते रामा शंकर ने सुरक्षित से पूछा।
“ मैं कुछ ऑफिसियल काम से आया हूँ .यहीं चाणक्यपुरी के शामे दा होटल में ठहरा हूँ।”
“ रूम नंबर ?” रामा शंकर ने पूछा।
“ 508 , शामे दा होटल , फिफ्थ फ्लोर .”
खाना तबतक खत्म हो चुका था. रामाशंकर ने कहा- “ और हालचाल सब ठीक हैं न, गाँव घर का ?
“ सब ठीक ही है ” सुरक्षित बोला
“ चलो, मैं कल तुमसे मिलता हूँ। “ कहते हुए जैसे रामा शंकर चलना चाहा
तब सुरक्षित पूछा “और तुम यहाँ ?”
“मैं यहीं एक प्राईवेट लिमिटेड में मैनेजर हूँ। कल आते है होटल में और वहीं और बातें होगी।” ऐसा कहते हुए रामाशंकर अपने साथियों के साथ चला गया।
सबेरे आठ बजे सुरक्षित के होटल में पहुंचकर रामाशंकर उसके कमरे की घंटी बजाया – “किर्र, किर्र। ”
दरबाजा खोलते हुए सुरक्षित बोला- “आओ, आओ, रामा शंकर मैं तेरा ही इंतजार कर रहा था।”
“ सुरक्षित भाई, पहले यह बताओ, मेरे पापा-मम्मी कैसे हैं ? मैंने दो तीन बार पत्र लिखा था। लेकिन उतर नहीं मिल पाया तो मन मारकर बैठ गया था।पापा मम्मी से मिलने का बहुत मन करता है। लेकिन इतना काम में व्यस्त हो गया हूँ कि चाहने के बाबजूद गाँव जाने का मौक़ा नहीं मिल पाता है।”
“अरे रामा शंकर भाई, तुम्हारा पत्र तुम्हारे माता-पिता को मिला था कि नहीं, इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है। लेकिन मेरी जानकारी में तुम्हारा भाई अभय शंकर उनदोनों पर बहुत जुल्म ढा रहा है। वह किसी दूसरी जाति की लडकी से शादी कर लिया है और पैसा-कौड़ी के लिए रोज माँ-बाप से झगड़ा लड़ाई करता है । मैं तो यह भी सुना हूं कि एक दिन तो अभय पर खाकर आया था और चाचा चाची को शहर के वृद्धाश्रम में भेजना चाह रहा था लेकिन गांव घर के लोग भरपूर विरोध करके इन दोनों को गांव में रख लिया। था।मुझे बाद में पता चला था। यह सुनकर जब मैं तुम्हारे घर पर गया था तब चाचा मुझसे साफ साफ तो कुछ नहीं कहा था। लेकिन उन्होंने चाची के सामने कहा था – “ हमलोग तो मझधार में फंसा हूँ।एक लड़का हमलोगों को छोड़ कर चला गया और दूसरा नाक में दम कर रखा है।”
“ तुम्हारी बात से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है। ऐसा कैसे कर सकता है अभय शंकर ?”
“कैसे कर सकता है इसे तो तुम जाकर पूछोगे तब ही पता चलेगा।” मायुश स्वर में सुरक्षित बोला।
“ठीक है, तुम कब लौट रहे हो ?” रामा शंकर पूछा।
“परसों,शाम चार बजे के फ्लाईट से। “
“मैं कुछ पैसा तुम्हे दूंगा उसे माँ-बाबूजी को दे देना और कह देना मैं शनिवार को गाँव पर आ रहा हूँ । तुम भी रहना गाँव पर ।”
“ठीक है, दे भी दूंगा और कह भी दूंगा।मैं कोशिश करूँगा गाँव पर रहने का।परन्तु अब यह बतलाओ कि तुम यहाँ तक पहुंचा कैसे ?
“भाई,मेरी लंबी कहानी है।मुझे तो उस दिन यही एहसास हुआ कि जब चारो तरफ अन्धेरा छा जाता है और अंधकार घनीभूत हो जाता है तब कहीं से न कहीं से आशा की किरण अवश्य छिटकती है। नर के रूप में नारायण मिल जाते हैं। जब मैं गाँव से आ रहा था तो रेलगाड़ी पर एक सज्जन, मेरे लिए तो भगवान ही थे, मिले थे जो मुझे दिल्ली में अपने घर ले आये। उनका बिजनेस चलता था उसमे मैं उनको हिसाब- किताब में मदद करने लगा, उनके काम में हाथ बटाने लगा। उनकी महानता देखो। उन्होंने मेरा नाम एक कोलेज में लिखबा दिया। वहीं से मैंने ग्रेजुयेसन किया। मेरी इमानदारी और कर्मठता देखकर उन्होंने मुझे अपनी कंपनी का मैनेजर बना दिया। मैं भी हमेशा उनके और उनके व्यापार के प्रति समर्पित एवं निष्ठावान रहा। तबसे यहीं इसी कार्य को कर रहा हूँ। सोचा था अभय शंकर माँ बाबूजी का देखरेख अच्छा करता होगा इसलिए थोड़ा उधर से मन को मटिहा रहा था। लेकिन तुम्हारी बात ने मुझे अंदर से हिला दिया है। अब मैं अपने माता-पिता को देखने तथा उनका आशीर्वाद लेने जरुर आउंगा मैं तो अपने पिता जी का एहसानमंद हूँ कि अगर वे मुझे उस दिन न डाटे होते तो शायद मैं भी वहाँ वही करता जो अभय कर रहा है।”
“जरुर आओ। मैं गाँव में तेरा इन्तजार करूँगा।”
“लेकिन दिल्ली से रवाना होने के पहले तुम्हे मेरे यहाँ आना होगा। बोलो,कब मैं आकर तुम्हे अपने साथ ले चलूँ? ’सुरक्षित को और भी कई काम दिल्ली में निबटाना था. कुछ देर मौन रहा फिर बोला- कल पांच बजे के बाद समय मिलेगा.उस समय तक मेरा ओफिसिअल काम सब हो जाना चाहिए।
“क्यों नहीं, तुम जिस समय कहोगे मैं आ सकता हूँ। ठीक है कल शाम पांच बजे शामेदा होटल में मैं तुमको ले चलने आ रहा हूँ “ ओके बाई कहता हुआ रामा शंकर चला गया।
सुरक्षित दिल्ली से गाँव आकर अगले दिन राधा कान्त जी के घर पर चला गया। वहां जाकर उसने बताया कि जब वह दिल्ली गया था तो उसे रामा शंकर से मुलाक़ात हुई थी। यह सुनते राधा कान्त जी रामा शंकर के हाल चाल जानने के लिए काफी उत्सुक गए। सुरक्षित ने बतलाया कि वह तो बहुत बड़ा आदमी हो गया है,चाचा। वह एक कंपनी का मैनेजर बन गया है। पूरा ठाठ- बाट के साथ रहता है। अपने निवास पर ले जाने के लिए आया था। उसके पास तो बहुत महंगी कार भी है। उसी से मुझे बुलाकर ले गया था। सुरक्षित बोलता जा रहा था और राधा कान्त जी अचरज से उसका मूंह ताके जा रहे थे। उसी समय रामा शंकर की माँ भी वहां आ गयी। सुरक्षित से माँ रामा शंकर के बारे में खोद खोद के पूछने लगी और वह जबाब देता रहा।
अंत में उसने जेब से कुछ रुपये निकाल कर देते हुए कहा- अंकल लीजिये, यह रुपया रामाशंकर आप लोगों के लिए भेजा है और वह यह भी कहा है कि वह शनिवार के दिन आप लोगों से मिलने आ रहा है। इस खबर को सुनते दोनों का रोम-रोम में खुशी की लहर दौड गयी। राधा कान्त जी को तो उसदिन की घटना से थोड़ी सकुचाहट भी महसूस हो रही थी लेकिन माँ तो खुशी से पागल हो गयी थी। माँ जब राधाकांत जी से बोली कि कहती थी न कि मेरा बेटा गया है तो कुछ बनाकर ही आयेगा उन्होंने खुशी से मौन स्वीकृति दे दी।
शनिवार के दिन अभय अपने साथियों के साथ मटरगस्ती करने चला गया था। उसकी पत्नी घर में थी लेकिन उसे पता न था कि आज रामाशंकर आनेवाला है। माँ-पिता जी बेसब्री से अपने लंबे समय से बिछुडे संतान को देखने के लिए काफी उत्सुक हो रहे थे।
उसदिन जब दोपहर में रामा शंकर बड़ी सी गाड़ी से घर पहुंचा तो गाँव के लोग दांत तले अंगुली दबाने लगे। राधाकांत जी और शकुंतला देवी अपने संतान को देखकर खुशी से पागल हो रहे थे। रामा शंकर भी अपने माता-पिता के सानिध्य में शकुन महसूस कर रहा था। हाल समाचार के बाद गाँव वाले कुछ समय के बाद चले गए थे। माँ बेचारी कड़ी- बड़ी आलू के भुंजिया के साथ चावल-दाल लेकर आयी और प्रेमपूर्वक बैठकर खिलाई। आज रामा शंकर को स्वर्गिक सुख का अनुभव हो रहा था। आज एक लंबे अरसे के पश्चात माँ के हाथ का खाना नसीब हुआ था। फिर जब रामा शंकर अकेला हुआ तो राधा कान्त और शकुंतला देवी अभय शंकर द्वारा किये जा रहे अत्याचार को रो-रो कर बताए रामाशंकर काफी दुखी हुआ और मन ही मन एक फैसला कर लिया। अभी हाल-चाल हो ही रहा था कि दूर में अभय दिखलाई दिया। दारु पीकर मुंह में पान चिबाता हुआ आ रहा था। रास्ते में ही किसी ने बड़े भैया के आने की खबर दे दी थी फिरभी उसके चाल ढाल में कोई फर्क नहीं आया।
अभय का पैर डगमगा रहा था और एक दूसरा पियक्कड़ साथी उसका दायाँ हाथ पकडे हुआ था। कुछ कुछ अनाप शनाप बोल रहा था। मुंह से पान का लार टपक रहा था।जब वह अंट संट बोलता तब उसका साथी चुप रहो,चुप रहो बोल रहा था। दरवाजा पर एक बड़ी सी गाडी खडी देखकर अभय का थोड़ा नशा फटा था परन्तु फिर उसी रंग ढंग में आ गया। जब दरवाजा पर पहुंचा तो उसकी माँ रामा शंकर से बोली-” बेटा, इसका रोज का यही टकसाल है।” उस समय अभय का चेहरा ऐसा बना हुआ था जिसे देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था कि वह होश में नहीं है।रामा शंकर बहुत समय तक उसे उपेक्षा की नजर से देखता रहा और अपनी माँ से बोला- “ मां,उससे कुछ मत बोलना,अभी वह होश में नहीं है,रोकने टोकने से वह कुछ अनाप सनाप बोल देगा तो बेमतलब बात बढ़ जायेगी। नशा फटेगा तब हम आराम से बात करेंगे।
अभय भी दरवाजा पर नहीं रुका,न बड़ा भी से बोला ही, सीधे घर के अन्दर चला गया और बिछावन पर बेहोश पड गया। घर में उसकी पत्नी दिआभर के क्रिया कलाप के बारे में बता दी थी। शाम के समय मुंह हाथ धोकर वह घर के बाहर आया। दरवाजा पर माँ के साथ रामा शंकर दुःख सुख बतिया रहा था।तभी आकर बिना कुछ प्रणाम पाती के आकर वहीं बैठ गया। रामा शंकर भी चुप था। दोनों अभय को गौर से देख रहे थे।तभी अभय बोला- “भैया आप कब आये?” रामा शंकर ने कहा- “जब तुम नशा में भूत होकर आया था।” आवाज में गुस्सा और तिरस्कार दोनों था।
अभय अपना सफाई देना शुरू किया-” आपको क्या मालुम मुझे जीने के लिए पीना पड़ता है,गम भुलाने के लिए इसका सहारा लिया। आप गए थे और मुझपर इल्जाम लगा। माँ भी आप ही को बेटा समझती है मुझे तो बेटा समझती ही नहीं। पापा का भी व्यवहार सौतेला जैसा हो गया है।एक बेचारी पत्नी है जो मुझे हर सुख दुःख में साथ देती है ”
“बस, बस, अब रहने दो। इस घर में सब गलत है ,बेसमझ है केवल तुम और तुम्हारी पत्नी को छोड़कर। मैं जबसे आया हूँ,गाँव घर तुम्हारा ही गुणगान कर रहा है । तुम शराब पीकर अपना शरीर तो बर्बाद कर ही रहे हो,मम्मी पापा पर दोषारोपण करके अपना आक्वद क्यों बर्बाद कर रहे हो। लम्पटों से संगती है,अनैतिक काम करते हो, पिताजी के रहते तुम औने- पौने में जमीन माफियाओं से जमीन बचाते हो।और क्या चाहिए अपने और अपने परिवार को तहस नहस करने के लिए।”
“हाँ, हाँ जानता हूँ आते आते माँ कान भर दी और आप मुझपर गरजने लगे। मैं जहां बेचा हूँ ,मैं अपना हिस्सा का बेचा हूँ,आपका नहीं।” आँख लाल पीला करते हुए अभय बोला
इसपर रामाशंकर ने कहा- “ तो कान खोलकर सुनो। मुझे यहाँ के धन-सम्पति से कोई लोभ लालच नहीं है। मुझे पता चला है कि तुम माँ और बाबूजी से बहुत बदतमीजी किए हो और करते हो। बाबूजी अब बूढ़े हो गए हैं। उनका खाना पीना, दवा-दारु,सेवा सुश्रुषा की जिम्मेदारी मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी थी। लेकिन तू ने इन्हीं की सम्पति पर नजर गडाए रखा। तुम्हे सम्पति से लोभ है न। जाओ मैं तुम्हे यहाँ की सारी सम्पति सुपुर्द करता हूँ और मैं यह भी कह देता हूँ कि भविष्य में मेरा बेटा-बेटी भी हक माँगने यहाँ नहीं आयेगा। अब मैं अपने माता-पिता को अपने साथ ले जा रहा हूँ। मैं सभी के सामने भीष्म प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं आजीवन माँ बाप की सेवा करूँगा और उनकी पैत्रिक सम्पति से एक पैसा भी नहीं लूंगा।
तबतक गाँव के लोग भी एक एक कर दरवाजे पर आ गए। जो गाँव वाले एक दरी बिछवाने के लिए फुर्सत निकाल न पाते वही गाँव वाले दो भाईयों के झगड़े को देखने सब काम छोड़कर घंटों वहां जम गए। रामा शंकर की बात सुन गाँव वाले अवाक थे फिरभी अभय शंकर को ही साथ देने की मौन स्वीकृति दे रहे थे जो रामा शंकर को यह नागवार लग रहा था। मनुष्य एक सामाजिक और स्वार्थी प्राणी होता है।अभय बुरा है या भला है, वह यहाँ रहता है तो वही न सुख-दुःख में साथ देगा, इससे अक्खज लेने से क्या फ़ायदा?
गाँव वाले आये तमाशा देखते रहे,कोई उचित अनुचित नहीं बोला।अभय शंकर वहीं खड़ा था । उस पल का इंतजार कर रहा था कि कब उन लोगों से घर खाली हो और उसका एकक्षत्र राज स्थापित हो जाए।
रामा शंकर अपने माँ-बाप को गाडी में लेकर श्रवण कुमार की तरह दिल्ली के लिए रवाना हो गया। वहाँ तमाशा देखनेवालों में से किसी ने भी नहीं कहा कि सांझ – रात में आपलोग कहाँ जाओगे कल सुबह -सबेरे चल जाना।
लेकिन एक बुढा शख्स चुप चाप वहाँ
खड़ा- खड़ा घटनाओं को विह्वलता के साथ देख रहा था और सोच रहा था-
एक ही पेड़ में फूल और काँटा दोनों जनम लेते हैं। एक अपने आचरण से लोगों को सुगंध से आनंदित कर देता है और दूसरा बदन और वस्त्र को चीरकर व्यथित।

Language: Hindi
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पूरी उम्र बस एक कीमत है !
पूरी उम्र बस एक कीमत है !
पूर्वार्थ
*कैसे  बताएँ  कैसे जताएँ*
*कैसे बताएँ कैसे जताएँ*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मैं मज़ाक नही कर रहा हूं
मैं मज़ाक नही कर रहा हूं
Harinarayan Tanha
*खर्चा करके खुद किया ,अपना ही सम्मान (हास्य कुंडलिया )*
*खर्चा करके खुद किया ,अपना ही सम्मान (हास्य कुंडलिया )*
Ravi Prakash
सब वर्ताव पर निर्भर है
सब वर्ताव पर निर्भर है
Mahender Singh
आप में आपका
आप में आपका
Dr fauzia Naseem shad
बुनकर...
बुनकर...
Vivek Pandey
डाॅ. राधाकृष्णन को शत-शत नमन
डाॅ. राधाकृष्णन को शत-शत नमन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
ज़िंदगी  है  गीत  इसको  गुनगुनाना चाहिए
ज़िंदगी है गीत इसको गुनगुनाना चाहिए
Dr Archana Gupta
हैंगर में टंगे सपने ....
हैंगर में टंगे सपने ....
sushil sarna
रमेशराज का ' सर्पकुण्डली राज छंद ' अनुपम + ज्ञानेंद्र साज़
रमेशराज का ' सर्पकुण्डली राज छंद ' अनुपम + ज्ञानेंद्र साज़
कवि रमेशराज
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
4119.💐 *पूर्णिका* 💐
4119.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अपराह्न का अंशुमान
अपराह्न का अंशुमान
Satish Srijan
Shankarlal Dwivedi passionately recites his poetry, with distinguished literary icons like Som Thakur and others gracing the stage in support
Shankarlal Dwivedi passionately recites his poetry, with distinguished literary icons like Som Thakur and others gracing the stage in support
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
एक  दोस्त  ही  होते हैं
एक दोस्त ही होते हैं
Sonam Puneet Dubey
मेरे फितरत में ही नहीं है
मेरे फितरत में ही नहीं है
नेताम आर सी
मुक्तक...
मुक्तक...
डॉ.सीमा अग्रवाल
हिम्मत और मेहनत
हिम्मत और मेहनत
Shyam Sundar Subramanian
"वक्त के साथ"
Dr. Kishan tandon kranti
प्यार : व्यापार या इबादत
प्यार : व्यापार या इबादत
ओनिका सेतिया 'अनु '
हम है बच्चे भोले-भाले
हम है बच्चे भोले-भाले
राकेश चौरसिया
अनुराग मेरे प्रति कभी मत दिखाओ,
अनुराग मेरे प्रति कभी मत दिखाओ,
Ajit Kumar "Karn"
ये तो कहो...
ये तो कहो...
TAMANNA BILASPURI
..
..
*प्रणय*
एकतरफा प्यार
एकतरफा प्यार
Shekhar Chandra Mitra
करुण शहर है मेरा
करुण शहर है मेरा
श्रीहर्ष आचार्य
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