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14 Apr 2017 · 4 min read

गृहस्थ-योगियों की आत्मा में बसे हैं गुरु गोरखनाथ

भक्ति-आन्दोलन से पूर्व योगमार्ग द्वारा धार्मिक आन्दोलन के प्रणेता, अपने युग के सबसे बड़े धार्मिक नेता, महान गुरु गोरखनाथ का आविर्भाव विक्रम संवत की दसवीं शताब्दी में माना जाता है। भारतवर्ष में ऐसी कोई भाषा, उपभाषा या बोली नहीं, जिसमें गुरु गोरखनाथ के सम्बन्ध में कहानियां न पायी जाती हों।
गोरखनाथ का जन्म कहां और कब हुआ, इसे लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। ‘इनसाइक्लोपीडिया आव् रेलिजन एण्ड एथिक्स’ के लेखक ग्रियर्सन ने गुरु गोरखनाथ के बारे में बडे़ ही अजीबोगरीब तरीके से लिखा है कि-‘‘गोरखनाथ सतयुग में पंजाब के पेशावर, त्रेता में गोरखपुर, द्वापर में द्वारका के भी आगे हुरमुज और कलिकाल में काठियावाड़ की चौदहवीं शताब्दी के व्यक्ति थे।’’
ग्रिर्यसन का यह भी कहना है कि दंतकथाओं और गोरखनाथ पर प्राप्त पुस्तकों के विवरण को आधार बनायें तो गोरखनाथ की बातचीत संत कबीर के साथ-साथ गुरुनानक से भी हुई थी।
ग्रियर्सन जैसे ही अनेक विचारकों के अपुष्ट प्रमाणों पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध आलोचक हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि ‘‘कबीरदास के साथ तो मुहम्मद साहब की बातचीत का ब्यौरा उपलब्ध है तो क्या इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कबीरदास और हजरत मुहम्मद समकालीन थे? वस्तुतः गोरखनाथ को दसवीं शताब्दी का परवर्ती नहीं माना जा सकता।’’
गुरु गोरखनाथ को लेकर पूरे भारतवर्ष में फैली दन्तकथाओं और प्राप्त पुस्तकों के आधार पर यह बात तो निर्विवाद रूप से कही जा सकती है कि शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और अत्यंत महिमान्वित महापुरुष भारत वर्ष में कोई दूसरा नहीं हुआ, जिसके अनुयायी पूरे देश के कोने-कोने में पाये जाते हों। गोरखनाथ के अनुयायी मेखला, श्रृंगी, सेली, गूदरी, खप्पर, कर्णमुद्रा, बघंबर, झोला आदि धारण करते हैं, अलख जगाते हैं, घूनी रमाते हैं। इस प्रकार के जहां असंख्य वैरागी आज भी स्थान-स्थान पर मिल जाते हैं, वहीं नाथमत को मानने वाली बहुत-सी जातियां गृहस्थ-योगी का जीवन भी जी रही हैं। शिमला पहाडि़ायों के नाथ अपने को गुरु गोरखनाथ और भरथरी का अनुयायी मानते हैं। ये कान चिरवाकर कुण्डल ग्रहण करते हैं और उत्तरी भारत के महाब्राह्मणों की तरह श्राद्ध के समय दान पाते हैं। ऊपरी हिमालय में ‘कनफटा नाथ’ नामक ग्रहस्थी योगियों की जाति बसती है। पंजाब में इन्हीं गृहस्थ योगियों को ‘रावल’ कहा जाता है। ये लोग भीख मांगकर, करतब दिखाकर या हस्तरेखा देखकर अपना जीविकोपार्जन करते हैं। गढ़वाल के ‘नाथ’ भैरव के उपासक हैं और नादी-सेली पहनते हैं। वन्यजीवी जातियां जैसे ‘तांती’, ‘जुलाहे’, ‘गड़रिए’, ‘दर्जी’ आदि भी नाथयोगी हैं। सूत का रोजगार इनका पुराना रोजगार है। अलईपुरा के जुलाहे ऐसे ही हैं। द्विवेदीजी ने कबीर को भी ऐसा ही गृहस्थ-योगी बताया है जो ‘गृहस्थ योगी’ जाति के मुसलमानी रूप में पैदा हुए। बुन्देलखंड के गड़रिये नाथ योगियों के अनुयायी हैं। इनके पुरोहित भी ‘योगी ब्राह्मण’ हैं। इनके विवाह के मन्त्रों में गोरखनाथ और मछन्दरनाथ का पवित्र स्मरण किया जाता है।
शेख फैजुल्लाह नामक एक बंगाली कवि की पुस्तक ‘गोरख-विजय’ में कदली देश की जोगन [ योगी जाति की स्त्री से गोरखनाथ को भुलावा देने के प्रसंग में कहलवाया गया है-‘‘तुम जोगी हो, जोगी के घर जाओगे, इसमें सोचना-विचारना क्या है। हमारा-तुम्हारा गोत्र एक है। तुम बलिष्ठ योगी हो। फिर क्यों न हम अपना व्यवहार शुरु कर दें। क्यों हम किसी की परवाह करें.. मैं चिकना सूत कात दूंगी। तुम उसकी महीन धोती बुनोगे और हाट में बेचने जाओगे और इस प्रकार दिन-दिन सम्पत्ति बढ़ती जायेगी जो तुम्हारी झोली और कंथा में अंटाए न अंटेगी।’’ लगभग 600 वर्ष पुरानी इस पुस्तक-‘गोरख-विजय’ के इस प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि ये वन्य जातियां प्राचीन काल से गृहस्थ योगी रही हैं। इन जातियों के ‘वन्य योगी’ आज भी सूत से अनेक टोटके करते हैं और गोरखधंधे के रूप में सूत से करामात दिखाते हुए जीविकोपार्जन करते हैं। 1901 की जनगणनानानुसार नाथ सम्प्रदाय के ‘तांती गृहस्थियों’ की बंगाल में जनसंख्या 772300, कपालियों की 144700, ‘जुगी’ की 536600 है। बिहार में ‘तंतवा’ 197900, मध्य भारत में ‘पांका’ 736700 तथा कर्नाटक में ‘तोगट’, ‘देवांग’, ‘नेगिए’ जाति के नाथयोगियों की जनसंख्या 3534000 है। उत्तर प्रदेश के नाथयोगी गड़रिये 1272400 हैं। इसके अतिरिक्त ‘पेरिके’, ‘जणपन’, ‘धोर’, ‘गांडा’, ‘डोंबा’, ‘कोरी’, ‘बलाही’, ‘कैकोलन’, ‘साले’, ‘कोष्टी’, ‘धनगर’, ‘कुडुवर’, ‘इडयन’, ‘भरवाड़’ जाति के ‘नाथ गृहस्थ योगी’ पूरे भारतवर्ष में पाये जाते हैं। पंजाब की ‘गड्डी जाति’ भी इसी श्रेणी में आती है।
रिजली ने बंगाल के योगियों की दो श्रेणी बतायी हैं जो ‘मास्थ’ और ‘एकादशी’ कहलाते हैं। रंगपुर जिले के योगियों का काम बुनना, रंगसाजी और चूना निर्माण है’ किंतु अब ये लोग अपना पेशा छोड़ चुके हैं। इन जातियों के स्मरणीय गुरु गोरखनाथ के अतिरिक्त धीरनाथ और रघुनाथ आदि हैं। इनके बच्चों का कान छेदन किया जाता है और मृतकों को समाधि दी जाती है।
देखा जाये तो इस प्रकार की वैराग्यप्रवण और गृार्हस्थप्रवण नाथ योगी सम्प्रदाय की अनेक जातियां पूरे भारतवर्ष में फैली हुई हैं, जिनके कर्म-राग-संस्कार, रीति-आचरण-व्यवहार में गुरु गोरखनाथ आत्मरूप में वास करते हैं।
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सम्पर्क- 15/109, ईसा नगर, अलीगढ़

Language: Hindi
Tag: लेख
1003 Views
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