ये फुर्कत का आलम भी देखिए,
*बचकर रहिए ग्रीष्म से, शुरू नौतपा काल (कुंडलिया)*
मैं मगर अपनी जिंदगी को, ऐसे जीता रहा
बेदर्द ज़माने ने क्या खूब सताया है…!
शाइरी ठीक है जज़्बात हैं दिल के लेकिन
It is that time in one's life,
दूसरे में गलती ढूंढने के बजाय हमें स्वयं के अंदर खोज करना चा
पुस्तक समीक्षा - गीत सागर