गुलशन-ए-इश्क़
‘दवे’ ये ख़ार गुलशन-ए-इश्क़ के भी क्या ख़ार है,
दिल चीर कर कहते हैं मुझे तुमसे प्यार है।
**** ****
ये वक़्त जरा मुस्कराने में गुजर जाए,
रोने को सारी उमर है,रो लेंगे.
बहाना मत बना आँख में तिनका गिर जाने का पगली,
सारे जहां के आशिक तेरे हो लेंगे.
हम दीवानो से इश्क़ का सबब मत पूछो,
अगर रो गए तो अश्कों में दुनिया डुबो देंगे.
**** ****
इश्क़ हमेशा एक सा रहा है मेरा,
खिलौनों से,सनम से, मौत से, भगवान से.
क्या सही और क्या गलत है इस ज़माने में,
क्यों पूछ रहे हो मुझ जैसे इंसान से.
इश्क़ कोई मौसम नहीं जो बदल जाए रंग इसका,
चाल इसकी अलहदा है,और अलग है ढंग इसका.
न समाया फन इसका दुनिया की किताब में,
काँटों ने भी इश्क़ रखा है हर खिलते गुलाब में.
**** ****