गुरू की गरिमा का अवसान !
गुरू की गरिमा का अवसान !
गुरू का पद वैदिक काल से ही सतत् गरिमामय रहा है ,पर आज अक्सर देखने में आता है कि कुछेक असामाजिक तत्वों ने गुरू का पद पाकर गुरू की गरिमा और विश्वास का चीर-हरण कर दिया है | गुरू-शिष्य परम्परा में गुरू को माता-पिता और ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा प्राप्त है |इसका महत्वपूर्ण कारण यही रहा है कि गुरू ने अपनी गुरूता का अवसान कभी नहीं होने दिया | वर्तमान संदर्भ मे देखें ,तो नित्य नये प्रकरण मीडिया और अखबारों में देखने को मिलते हैं, कि किस प्रकार स्कूलों में नाबालिग बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म होते रहते हैं | स्कूलों में ही नहीं हॉस्टलों में भी ऐसे कुकृत्य देखने को मिलते हैं ,जहाँ या तो नाबालिगों को बहला-फुसलाया जाता है या ब्लैकमेल करके उनका शारीरिक-मानसिक
बलात्कार किया जाता है | उच्च शिक्षा मंदिरों में तो कुछ गुरू ,गरू से भी बदतर हालात में पाये जाते हैं,जो शोध करवाने के बहाने येन-केन प्रकारेण यौन शोषण को अंजाम देते हैं |
ऐसे निकृष्ट प्रकरण गुरू के रिश्ते को दागदार बनाकर अच्छे और गरिमामय गुरूओं के चरित्र को भी शंकाग्रस्त कर देते हैं | ऐसे में विश्वास और पवित्र रिश्ता कायम रख पाने में सद्गुरू को भी अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है | आज जरूरत है अपनी बेटियों को सशक्त,सबला,और जागरूक बनाने की | उन्हें भी अभिभावकों से ऐसी बातें छिपानी नहीं चाहिए | इसके साथ ही ऐसे गुरूओं को पुन : अपनी गरिमा का निर्धारण करना चाहिए ताकि गुरू-शिष्य में विश्वास और इज्जत कायम हो, वरना इनका अंजाम तो सभी जानते ही हैं कि क्या होगा ?
डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”