गुरू की गरिमा का अवसान !
गुरू की गरिमा का अवसान !
डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”
मानव कल्याण की भावना से परिपूर्ण गृहस्थ कर्त्तव्ययोगी , सृजनशीलता एवं दायित्व-बोध से युक्त गुरूओं ने इस जगत में मार्गदर्शक एवं जीवनदृष्टा के रूप में अपनी सर्वोपरि भूमिका को निभाते हुए राष्ट्र-निर्माण और विकास में सदैव अपने विशेष दायित्वों का निर्वहन किया है । बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करते हुए उनमें संस्कार और सद्गुणों का विकास तो मां करती हैं , परन्तु राष्ट्र के प्रति उनकी जिम्मेदारी को सुनिश्चित कर उनमें उच्चतम मानवीय मूल्यों , सद्गुणों और संवेदनाओं का उच्चतम विकास तो गुरू ही करता है । गुरू का पद वैदिक काल से ही सतत् गरिमामय रहा है जो सतत काल-कालान्तर में प्रक्रियाधीन रहा है , परन्तु आजकल अक्सर देखने में आता है कि कुछेक असामाजिक तत्वों ने गुरू का पद पाकर गुरू की शोभा , गरिमा और विश्वास का चीर-हरण कर दिया है । अभी हाल ही में देखा गया कि किस प्रकार अनेक गुरू मिलकर मासूम बच्चियों से शर्मनाक हरकतें करने में रत हैं । अरे हां ! मैं इन्हें गुरू कहकर क्यों संबोधित कर रहा हूं……ये तो गरू हैं या कहूं तो उससे भी निम्म वर्ग में शामिल हैं । कम से कम बेचारा गधा मालिक और मेहनत के प्रति वफादार तो होता है , मगर ऐसे अ-मानव किसी के प्रति वफादार नहीं होते…..न परिवार के , न पाठशाला के और न ही सरकार के ! राष्ट्र की बात तो बहुत दूर की बात है । ऐसे कामुक कार्मिक, वफादार होते हैं तो मात्र – कामवासना के ।
भारतीय सभ्यता , संस्कृति और संस्कारों में गुरू-शिष्य परम्परा में गुरू को माता-पिता और ईश्वर से भी ऊँचा दर्जा प्राप्त है । इसका महत्वपूर्ण कारण यही रहा है कि गुरू ने अपनी गुरूता का अवसान कभी नहीं होने दिया, परन्तु वर्तमान संदर्भ मे देखें , तो नित्य नये प्रकरण मीडिया और अखबारों में देखने को मिलते हैं, कि किस प्रकार स्कूलों में नाबालिग बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म होते रहते हैं | स्कूलों में ही नहीं हॉस्टलों में भी ऐसे कुकृत्य देखने को मिलते हैं , जहाँ या तो नाबालिगों को बहला-फुसलाया जाता है या ब्लैकमेल करके उनका शारीरिक-मानसिक बलात्कार किया जाता है । उच्च शिक्षा मंदिरों में तो कुछ गुरू , गरू से भी बदतर हालात में पाये जाते हैं,जो शोध करवाने के बहाने येन-केन प्रकारेण यौन शोषण को अंजाम देते हैं । ऐसे निकृष्ट अमानवीय प्रकरण गुरू के रिश्ते को दागदार बनाकर अच्छे और गरिमामय गुरूओं के चरित्र को भी शंकाग्रस्त कर देते हैं । ऐसे में विश्वास और पवित्र रिश्ता कायम रख पाने में सद्गुरू को भी अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है । अतः आज जरूरत है , अपनी बेटियों को सशक्त, सबला और जागरूक बनाने की । हां उन्हें भी अभिभावकों से ऐसी बातें छिपानी नहीं चाहिए क्योंकि चुप रहने से दानवों के होंसले बुलन्द होते हैं । इसके साथ ही ऐसे गुरूओं को पुन : अपनी गरिमा का निर्धारण करना चाहिए ताकि गुरू-शिष्य में विश्वास और इज्जत कायम हो, वरना इनका अंजाम तो सभी जानते ही हैं कि क्या होगा ?