गुरु: गौरव के प्रतीक(लघुकथा)
गुरु :गौरव के प्रतीक/लघुकथा
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नेतलाल यादव
कल सुबह सोकर उठा ही था कि मोबाइल की रिंगटोन बज उठी।आँखों को मलते हुए मोबाइल उठाया और कॉल रिसीव किया तो उधर से आवाज़ आई – फोन कहाँ लगा है?
मैंने उत्तर दिया- आप जहाँ फोन लगाएं हैं, वहीं लगा है ! फोन आप लगाएं हैं !
फिर मैंने महसूस किया कि ये तो मेरे बचपन के गुरु चन्द्रकांत पाण्डेय जी की आवाज है । मैंने तुरंत फोन पर ही दण्डवत किया। गुरु जी ने भी आशीर्वाद देते हुए ,अपनी विदाई के सम्मान समारोह में उपस्थित रहने की बात कही ।
मैंने कहा-जी , मैं 11:30 बजे तक उपस्थित हो जाऊँगा ।
गुरु जी को वचन देने के बाद मैंने अपने हेडमास्टर श्री अमित कुमार त्रिपाठी जी से बात किया और कुछ उपहार मंगवाया ।समारोह स्थल तक पहुँचने के लिए इतिहास शिक्षक श्री अनिल वर्मा जी का सहयोग लिया और उनकी नई मोटरसाइकिल से समय पर उपस्थित हो गया ।
इस सम्मान समारोह में कोरोना काल के बावजूद भी गाँव-ग्रामीण, शिक्षा प्रेमी बुद्धिजीवी संघ के अधिकारी -गण मीडिया कर्मी बिजय चौरसिया और विभिन्न विद्यालयों के निजी व सरकारी शिक्षक मौजूद थे । सुबह से ही विद्यालय के प्रभारी प्रधानाचार्य श्री नारायण चौधरी और उनके सहयोगी शिक्षक कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे हुए थे,बडी दक्षता के साथ ,श्री बिहारी बैठा जी के अध्यक्षता में मंच संचालन का कार्य श्री त्रिभुवन पाण्डेय कर रहे थे।आज एक सफल योद्धा, कर्मवीर,सौम्य मृदुभाषी, संस्कारी शिक्षक सरकारी फाइलों से विदा हो रहे थे ।सभी ने जी भरकर उनके गुणों का बखान किए थे ,अंत में गुरु जी ने अपने अध्यापक जीवन के सारगर्भित बातों को रखते हुए ,सबों से शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भरने की बात कही । सचमुच उन्हीं के दिये संस्कार की बदौलत उनका यह शिष्य यशोगामी है। आज उनकी इस विदाई बेला पर मेरी आँखें सजल हो उठी थीं।
नेतलाल यादव ।
चरघरा नावाडीह, पंचायत-जरीडीह, थाना-जमुआ,जिला-गिरिडीह, झारखंड ।
पिन कोड-815318