गुरु कृपा
गुरु गुरु तू मत कह,
गुरु की न कर चाह,
गुरु मिले तुझे तभी,
गुरु की वाणी खोज।…..(1)
गुरु ने जो बता दिए,
मन में लियो बैठाये,
ऐसा ज्ञान जो दे सके,
गुरु में गया समाय।…….(2)
गुरु की कर सेवा सच्ची,
गुरु न चाहे एक भी रत्ती,
गुरु को मिलिए जो भक्ति,
गुरु ज्ञान का अमृत बरसाए।……(3)
गुरु के समीप जो बैठिये,
अपना गुरूर तज लिए,
गुरु भक्ति मन में जगी,
जग से मुक्ति की कश्ती मिली।……..(4)
गुरु न चाहे अपनी स्तुति,
ज्ञान स्तुति जग में फैलाये,
पा लिया जो गुरु ज्ञान,
यही सच्ची स्तुति गुरु चाहे।……(5)
गुरु ज्ञान को यो समाये,
सागर जैसे मोती है पाये,
गुरु दिए जो ज्ञान के मोती,
पाये जो मोती धन्य हो जाए।…..(6)
गुरु से मिलिए एक बार,
मिलते ही जाए पहचान,
डूबे हुए को तार दे,
भव सागर में कश्ती उतार के।…..(7)
रचनाकार-
✍🏼✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।