गुरु की महिमा
आप हैं जग के दीपक देखो,
ज्ञान की बाती जलाता गुरु है।
लौ जस खुद ही जलकरके ही,
तम को दूर भगाता गुरु है।
धूप हो छाँव हो कठिन परीक्षा हो,
सबको ही पार लगाता गुरु है।
रूप गुरु प्रभु भी धर आते,
मुक्ति की राह दिखता गुरु है।
जन्म लिए धरती पर आए,
मात पिता गुरु बनके पढ़ाये।
ठुमुकि ठुमुकि पग धरत धरनि पर,
पैदल ही गुरु आश्रम जाए।
भूख लगे तब भाव पिला कर,
छाती लगा किलकारी सुनावे।
दर्द बढ़ावे वो भाव जगाये भी,
नैनन अश्रू से लोर बहावे।
आपन आन वीरान पराये को,
भाव सयाने बताता गुरु है।
भूले भूलाये को मन बिसराये को,
सृष्टि की राह दिखाता गुरु है।
कच्ची कली कुम्हलाई कला नित,
ऐनन रूप गढ़ाता गुरु है,
कहते हैं वेद बताते पुराविद,
नारद नाम कहाता गुरु है।