गुरु का महत्व एक शिष्य के जीवन में अनुपम होता है। हम चाहे कि
गुरु का महत्व एक शिष्य के जीवन में अनुपम होता है। हम चाहे कितने भी सक्षम क्यों न हों, गुरु के अभाव में हम अपने उचित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उचित-अनुचित का भेद गुरु वाणी से ही मुखरित होता है। ब्रह्मांड ज्ञान का सागर है। हमारी चेतना एक छोटे से मटके के समान है, पर इस छोटे से गागर में ज्ञान रूपी सागर को कैसे भरना है, यह गुरु के सानिध्य से ज्ञात होता है। जिस प्रकार हीरा स्वयं में मूल्यवान होते हुए भी जौहरी के तराशने पर ही उसमें शुद्ध निखार और चमक आती है, तब जाकर उसका सटीक मूल्य का पता चलता है। ठीक उसी प्रकार गुरु हमारी ज्ञान रूपी चेतना को जागृत कर हमारा स्वयं हमसे ही परिचय करवाते हैं। गुरु और शिष्य का संबंध नदी और उसकी धारा की तरह है। गुरु के बिना शिष्य धारा विहीन नदी के समान है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं होता। हमारे धर्म ग्रंथों में ईश्वर ने भी गुरु का स्थान स्वयं से ऊँचा बताया है। मैं अपने ऐसे सभी गुरुजनों को प्रणाम करती हूँ।
मंजु कुमारी मिश्रा
होजाई, असम