गुरु और गुरू में अंतर
गुरु और गुरू में अंतर
गुरू कमाल कर दिया / या गुरू क्या बात है ।
/या गुरू क्या हालचाल है / वाह गुरू मान गए तुम्हें
ऐसा संबोधन आम है , जो हम दोस्तों तक में बोलते है , पर क्या हम अपने शिक्षक , संत/ गुरुवर से ऐसा बोल सकते है |
उत्तर – कदापि नहीं | तब इन दोनों में अंतर क्या है ?
लेखन में गुरु और गुरू दोनों शब्दों का प्रयोग मिला है
गुरु शब्द मूलत: संस्कृत भाषा का शब्द है , जो हिंदी में ज्यों का त्यों प्रवेशित है । हिंदी के शब्दकोष में गुरु का अर्थ शिक्षक (ज्ञान देने बाला ) है । संस्कृत में ‘गु’ शब्द का अर्थ अंधकार और ‘रु’ शब्द का अर्थ प्रकाश है । इस तरह गुरु शब्द का अर्थ है , अंधेरें से प्रकाश की ओर ले जाने वाला व्यक्तित्व |
हिंदी के शब्दकोश में संस्कृत भाषा से गुरु शब्द को तो शामिल किया परंतु गुरू शब्द हिंदी के शब्दकोश में नहीं है।
गुरू केवल संस्कृत भाषा का शब्द है और संस्कृत के शब्दकोश में उपलब्ध है। जब आपके सामने आपके गुरु और उनके समकक्ष खड़े हों। तब एक साथ दोनों को सम्मान देने के लिए संस्कृत भाषा में ‘गुरू’ शब्द का प्रयोग आप चाहें तो कर सकते है |
ऐसा कुछ विद्वानों का मत है
पर मैं “सुभाष” इससे सहमत नहीं हो पा रहा हूँ
क्योंकि हिंदी भाषा में प्रयुक्त (गुरू) शब्द नहीं है। गुरु ही है।
संस्कृत में….
गुरु ( एक वचन
गुरू- द्विवचन
गुरव: – बहु वचन है।
पर हिंदी में एक वचन , बहु वचन होते है , द्विवचन नहीं होते है
हम हम हिंदी में बहु वचन के लिए प्रयोग इस प्रकार करेंगे।
पूज्यनीय गुरुजन अथवा पूज्यनीय गुरुजनों
पूज्यनीय गुरूजन अथवा पूज्यनीय गुरूजनों नहीं प्रयोग करेगें
एक श्लोक प्रस्तुत है
गु शब्द:अंधकारो$स्ति,””रु शब्दस्तन्निरोधक:।
अंधकार निरोधित्वात्””‘”,,,”””गुरुरित्यभिधीयते।।
संस्कृत में क्या यहाँ पर मात्र आप दो ही गुरुजनों को देख रहे हैं , या समस्त गुरुजनों को देख रहे है
निश्चित आप समस्त गुरुजनों को देख रहे है
मेरे मत अनुसार गुरू का सही अर्थ-
” गुरू” का एक अर्थ ” बड़ा ” भी होता है सबसे बड़े आकार वाले को गुरू कहा जा जाता है
गुरू शब्द को महत्वपूर्ण के स्थान पर भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे “इस कार्य को किसी अनुभवी को ही सौंपा जाए क्योंकि यह एक गुरू कार्य है।
लेकिन छोटी रु लगे गुरु का भी अर्थ भी दीर्घ ( बड़ा) है , साहित्य में “लघु गुरु” ऐसा ही लिखते है , तब “बड़ा” के लिए ” गुरू’ लिखने की क्या जरुरत है
मेरा तो निजी मत है कि गुरू को अब तंज भाषा में प्रयोग किया जाता है , जिसमें गुरू का अर्थ ” बड़ा ” ही होता है
जैसे – वह गुरू घंटाल है ( बड़ा धूर्त )
वह अपने आप को महागुरू समझता है ( यानी- होशियार , चतुर , ज्ञानी )
बड़े गुरू निकले हो ( यहाँ तंज भाषा में गुरू , धूर्तता की और संकेत कर रहा है )
और अब छंदों में मात्राभार संतुलन करने में , गुरु और गुरू का प्रयोग धड़ल्ले से चल रहा है | इससे आगे तो और भी कई शब्दों की मात्राएँ तोड़कर छंद में मात्रा भार संतुलन किया जा रहा है | फेस बुक के साहित्य समूहोंं पर अब पाठक कम है , लेखक , कवि , गुरु बहुत है ,
जिनमें कुछ तो अब सचमुच गुरू बन गए है
यदि आपमें से कोई और सही तथ्य जानता है , तो सहर्ष स्वागत है | हम सही तर्क से सहमत हो सकते है | यह जो हमने ज्ञानार्जन अनुभव किया है , उस आधार पर आलेख लिखा है
क्या जैनागम में ” गुरु” शब्द है | प्राचीन ग्रंथों में यह तो सुना व पढ़ा है कि अमुक आचार्य के अमुक साधु ने — |
” अमुक गुरु के अमुक शिष्य ने ” यह किस प्राचीन ग्रंथ में है
आचार्य का पर्यायवाची गुरु मान लेना भी न्यायोचित नहीं है
आचार्यत्व गुण गुरु में समानता भी गले के नीचें नहीं उतरती है
गुरु तो किसी एक विषय में दक्ष होकर लौकिक संसार में बना जा सकता है ,पर आध्यात्मिक संसार में सभी कसोटियों पर खरा उतरतर और विषयों पर दक्ष होकर आचार्य बना जा सकता है
और अव तो हिंदी विधानुरुप गुरु में घंटाल प्रत्यय लगकर नया शब्द अर्थ धूर्त हिंदी में बन गया है ,
पर आचार्य आज भी गरिमामय शुचि शब्द है
सादर
आलेख – सुभाष सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०