गुमनाम सा देशभक्त
मामूली सी बात पर दोनों पक्षों के लोग आमने-सामने आ चुके थे। तनातनी हद से कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी। दोनों ही पक्ष खुद को सच्चा पक्का देशभक्त साबित करने पर तुले हुए थे।
एक भीड़ की तरफ से आवाज आ रही थी- “जय श्री राम…
भारत माता की जय…।” दूसरी तरफ से भी जवाब में नारे बुलंद हो रहे थे। इंकलाब जिंदाबाद… हिंदुस्तान जिंदाबाद…। दोनों तरफ भीड़ मैं शामिल लोग छोटे-छोटे तिरंगे झंडे और कुछ इबारत लिखी तख्तियां हाथों में थामे हुए थे। होड़ यही थी कि किस तरह खुद को बड़ा देशभक्त साबित किया जाए।
यह सारा खेल किसी के लिए मसाला बन रहा था, किसी के लिए रोजगार, किसी के लिए सियासी रोटियां, तो किसी के लिए मसालेदार खबर। इस बीच एक एक ऐसा शख्स भी था जो किसी भी पक्ष की भीड़ का हिस्सा नहीं था। वह सिर्फ एक ही काम में मशगूल था। वह शख्स भीड़ के हाथों से गिर रहे देश के झंडों को उठा रहा था, ताकि उनको पैरों के नीचे कुचलने से बचाया जा सके। हालांकि इस काम में वह खुद भीड़ के पैरों से कई बार कुचला जा चुका था।
अब मेरी समझ से परे था कि सच्चे देशभक्त का खिताब किसको दूं? उन दो पक्षों में शामिल भीड़ को? उस भीड़ का समर्थन करने वालों को? न्यूट्रल रहकर तमाशबीन बने हुए लोगों को? फोटो खींचकर, मसालेदार खबर तलाशने वालों को? या फिर उस शख्स को जो अपने देश के टूटे-फूटे और फटे-गिरे झंडों को आदर के साथ “कथित” देशभक्तों के क़दमों तले से उठा रहा था???
© अरशद रसूल