गुनगुन मधुकरियाँ करें
जुही, केतकी, कुमुदिनी ,पुलकित कलिका पात ।
दृश्य मनोरम सुष्मिता ,अंशुमान सौगात ।।1
भरकर आँचल रश्मियाँ ,वसुंधरा दे आस ।
अंतर् में किंशुक खिला ,मन भरता मधुमास ।।2
नागन सी डसती रही ,बढ़ती नित ही प्यास ।
आयी स्वयं बयार ले , प्रियतम को अब पास ।।3
गुनगुन मधुकरियाँ करें ,फूली सरसों बीच ।
मधुकर बेसुध दौड़ते ,प्रीति-रीति मन सीच ।।4
मधुकर आनंदित हुए ,पाने सौरभ गंध ।
जोड़ रहे हैं प्रीति का ,कलिका से अनुबंध ।।5
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
मौलिक सृजन
वाराणसी
18/2/2022