गुण-धर्म
गुण-धर्म
जलन इस कदर कि हर तरफ़ आग सुलगाने में लगे हैं,
तभी तो सभी देश में एक दूसरे को जलाने में लगे हैं।
दूसरों को लगाई आग में खुद भी धू-धू कर जलते हैं,
ख़ाक हो जाते हैं जब तक समझते और संभलते हैं।
आग तो भाई बहन ने भतीजे के लिए जलाई थी,
और होलिका खुद जल गई जिसने आग लगाई थी।
आज भी यूँ ही जल रहे हैं दूसरों को जलाने वाले,
ख़ाक में मिल जाते हैं अक्सर दूसरों को मिटाने वाले।
हर पदार्थ का अपना निश्चित गुण-धर्म होता है,
स्थान परिवर्तन पर भी गुण-धर्म को नहीं खोता है।
आग का गुण-धर्म जद में आने वाले को जलाना है,
नहीं देखती किस का मक़सद किस को मिटाना है।
पदार्थ मानव की तरह अपना गुण-धर्म नहीं बदलते,
खुद आग लगाने वाले भी तभी तो हैं अक्सर जलते।
पर प्रकृति के नियम को मानव समझ नहीं पाता है,
दूसरों के लिए लगाई आग में स्वयं ही जल जाता है।